Saturday, September 29, 2007

दुनिया को जीत लेने का जज्बा रखने वाला शख्स जिंदा लाश बन गया है

यह कहानी एक ऐसे बिहारी धावक की है जो पिछले १२ वर्षों विकलांगता से जूझ रहा है। यह शख्स पेशे से वकील है और आज शारीरिक विकलांगता के कारण दो डग चलने में भी असमर्थ है। इस शख्स का नाम है देवेन्द्र प्रसाद।

जब देवेन्द्र प्रसाद १९७९ में पूरे बिहार में ८०० मीटर की दौड में अव्वल आए थे, तो उनमें पूरी दुनिया को जीत लेने का जज्बा था। इसी दौड ने पेशे से वकील इस शख्स को एक ऐसी बीमारी का मरीज बना दिया जिसके कारण वे पिछले १२ वर्षों से बैठने में पूरी तरह असमर्थ हैं। वे अपनी दिनचर्या या तो लेट कर या खडे होकर निपटाते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय तक की कागजी कवायद के बावजूद उन्हें कहीं से मदद नहीं मिली।

पटना के कदमकुआं इलाके स्थित पीरमोहानी के रहने वाले देवेन्द्र प्रसाद आज खाना-पीना, शौच, यात्रा, सब कुछ लेट कर या खडे होकर निपटाने के लिए अभिशप्त हैं। उनका कूल्हा इस कदर जाम हो गया है कि वे बिल्कुल नहीं बैठ सकते। वे मायूस स्वर में कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे मेरी रग रग में ताले जड दिए गए हैं। मैं पिछले १२ वर्षों से बैठा नहीं हूं।

जो व्यक्ति कभी मैदान पर सरपट दौडा करता था, वह आज दो डग चलने के लिए भी खुद को घसीटता है। सिविल कोर्ट पटना में वकील देवेन्द्र प्रसाद को कोर्ट जाने के लिए भी रिक्शे की सवारी लेट कर या खडे होकर करनी पडती है। एन्कलोजिंग स्पोंडीलाइटिस बीमारी की चपेट में आने की उनकी कहानी वहीं से शुरू होती है जब वे सफल धावक हुआ करते थे। १९७९ में प्रांतीय दौड प्रतियोगिता में वे अव्वल तो आए, लेकिन उसी वक्त उनके पांव के अंगूठे में चोट लग गयी।

१९८०-८१ में कमर में मामूली दर्द शुरू हुआ। १९९३ तक उनका कूल्हा इस परेशानी की चपेट में आ गया। १९९७ में एम्स में उन्हें एनक्लोजिंग स्पोंडीलाइटिस का मरीज बताया। एम्स के डॉ. एस. रस्तोगी ने इसका निदान ऑपरेशन बताया। देवेन्द्र प्रसाद ने आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री राहत कोष से मदद लेनी चाही। एम्स ने कूल्हा पूरी तरह बदलने का खर्च १.२६ लाख रुपये बताया। प्रधानमंत्री कार्यालय के सेक्शन ऑफीसर पी. जी. जार्ज ने प्रसाद को पत्र (पत्र संख्या ८२ (६८७)/९८-पीएमएफ) के जरिए पूरा दस्तावेज सौंपने को कहा। प्रसाद ने ऑपरेशन की तारीख, आय प्रमाण पत्र आदि का ब्यौरा ३-३-९८ को पीएमओ को भेजा। दिल्ली की आहूजा सर्जीकल्स कंपनी ने हिप रीप्लेसमेंट के खर्च का ब्यौरा दिया।

एम्स की ओर से रस्तोगी और स्वास्थ्य मंत्रालय के तत्कालीन अवर सचिव चरणजीत सिंह को यह सूचित किया गया कि मरीज को ऑपरेशन के लिए १५ जुलाई, १९९८ को भर्ती किया जाएगा, इसलिए प्रधानमंत्री सहायता कोष से एम्स निदेशक के नाम १.२६ लाख रुपये का चेक भेज दिया जाए। यह मदद प्रसाद को कभी नहीं मिली। इसी बीच एक बार फिर उनके साथ क्रूर मजाक हुआ और उनका पैर टूट गया। आज उनकी पत्नी बमुश्किल सिलाई कर २०००-३००० रुपये कमा लेती हैं। समय पर फीस नहीं चुकाने के कारण उनकी सतानों को कई बार स्कूल से बाहर किया जा चुका है।

४५ वर्षीय देवेन्द्र प्रसाद का कहना है कि मैं अपनी जिंदगी की लाश ढो रहा हूं। खुद किसी का खयाल आता है, लेकिन इस पडाव पर परिवार को छोड कर कैसे चला जाऊं? उनका पता है - देवेन्द्र प्रसाद, तीसरी गली, पीरमोहानी, पो.ओ. - कदमकुआ, जिला-पटना (बिहार)।

Friday, September 28, 2007

महात्मा गांधी पर लिखी नयी पुस्तक तैयार



२ अक्टूबर को महात्मा गांधी का १३८वां जन्मदिवस है और इस अवसर पर गांधीजी पर लिखी नयी पुस्तक विमोचन के लिए तैयार है। इस पुस्तक का नाम है - 'महात्मा गांधी :इमेजेज आइडियाज फॉर नन-वॉयलेंस'। लंदन में बीबीसी के पूर्व पत्रकार विजय राणा ने इस पुस्तक को संपादित किया है। भारतीय मूल के राणा NRIfm.com के संपादक हैं।

२ अक्टूबर यानी गांधी जयंती के अवसर पर इस किताब का विमोचन किया जाएगा। इस किताब में महात्मा गांधी से जुडें तमाम चित्रों को भी शामिल किया गया है। गौरतलब है कि महात्मा गांधी के आदर्शों को लेकर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में चर्चा होती रही है। भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों में गांधीजी के अनुयायी बडी तादाद में मौजूद हैं. लोग उनके आदर्शों का पालन कर रहे हैं। इस किताब का लोकार्पण भारतीय उच्चायोग के इंडिया हाउस में होगा। इस किताब में गांधीजी के कई चित्रों, भित्तिचित्रों, पेंटिंगों आदि को शामिल किया गया हैं। इन चित्रों का महत्व यह है कि ये चित्र अपने आप में गांधीजी के आदर्शों को बयां करते हैं। ये चित्र अहिंसा, शांति, धार्मिक सौहार्द्, सामाजिक एकता, ग्रामीण विकास, आर्थिक उदारीकरण जैसे तमाम मुद्दों को बयां करते नजर आएंगे।

इस किताब में इस बात की भी व्याख्या की गयी है कि गांधी की पूजा पूरे विश्व में किस प्रकार होती है। दरअसल, गांधी की पूजा गांधी के विचारों के साथ होती है। इस किताब में शामिल चित्रों से यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार गांधी न केवल भारत में प्रेरणा के स्रोत हैं बल्कि वे विश्व के तमाम देशों में इसी प्रकार प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

इस किताब में गांधी के साथ साथ नेल्सन मंडेला के भी चित्र हैं। गौरतलब है कि मंडेला ने भी गांधी के आदर्शों को मान कर संघर्ष किया था। इस किताब में आयरलैंड की ब्लैक वैली के भी कुछ चित्र शामिल हैं। दरअसल, वहां एक स्मारक पर गांधीजी के कुछ शब्द लिखे हुए हैं। यह स्मारक ग्रेट आयरिश में आए अकाल में भूख से मारे गए लाखों लोगों की याद में स्थापित किया गया था। इसी प्रकार अलग अलग जगहों पर गांधी जी के आदर्शों वाले पत्थरों या पोस्टरों को चित्र के द्वारा यहां रखा गया है। विजय राणा को इस किताब को तैयार करने में तीन साल लग गए। राणा ने विश्व के अलग अलग हिस्सों से चित्र और अन्य सामग्री इकट्ठी की हैं।

Monday, September 24, 2007

टीम इंडिया ने रचा इतिहास

टीम इंडिया ने ट्‍वेंटी-20 विश्व कप जीत लिया। फाइनल मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को 5 रनों से हरा दिया। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 5 विकेट पर 157 रन बनाए। जवाब में पाकिस्तान की टीम 19.3 ओवरों में 152 रनों पर सिमट गई।

इरफान पठान को मैन ऑफ द मैच एवं शाहिद अफरीदी को मैन ऑफ द सीरीज चुना गया. पठान ने 4 ओवरों में 16 रन देकर 3 विकेट लिए। वहीं कई अन्य खिलाडियों ने भी अच्छे शानदार खेल का परिचय दिया. गौतम गंभीर ने 54 गेंदों पर शानदार 75 रन तथा रोहित शर्मा ने १६ गेंदों पर ३० रन बनाए. हालांकि युवराज सिंह फाइनल मुकाबले मे चौकों एवं छक्कों की बारिश करने में असफल रहे. युवराज ने 19 गेंदों पर केवल 14 रन ही बनाए।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई नेताओं एवं जानी मानी हस्तियों ने शानदार जीत के लिए टीम इंडिया को बधाई दी है. टीम इंडिया को बधाई देने एवं टीम की हौसलाअफजाई करने वालों में बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान भी शामिल थे. उन्होंने खिलाडियों से गले मिलकर उन्हे बधाई दी. इस अवसर पर उत्साहित हरभजन सिंह ने उन्हें गोद में उठा लिया. शाहरुख अपने बेटे के साथ स्टेडियम में इस रोमांचक मुकाबले के दौरान तालियां बजाते नजर आए तथा बाद में उन्होंने एक टीवी चैनल से बातचीत में खिलाडियों की जमकर तारीफ की.

Saturday, September 22, 2007

पंजाबियों दा शौक

यूं तो ८.५ लाख रुपये में दिल्ली जैसे शहर में एक छोटा आशियाना खरीदा जा सकता है, लेकिन पंजाब में ऐसे दर्जनों संपन्न लोग हैं जिनके लिये यह रकम कोई मायने नहीं रखती। वे इतनी बडी रकम मोबाइल फोन का नंबर खरीदने में खर्च करने से परहेज नहीं करते हैं। पंजाब में ऐसे कम से कम 100 लोग हैं जिन्होंने इस तरह के अनूठे नंबर हासिल करने के लिए 1 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक खर्च किए हैं।

इनमें से कुछ वीआईपी मोबाइल नंबर हैं :

9780000000 : 15 लाख रुपये
9864000005 : 9 लाख रुपये
9864000018 : 8.5 लाख रुपये
9864000001 : 7.5 लाख रुपये
9864100000 : 3.50 लाख रुपये


इन दिनों पंजाब में अनूठे मोबाइल नंबर हासिल करने का कुछ धनाढय लोगों पर जुनून छाया हुआ है। इन नंबरॉ के लिये लगने वाली बोली में ये संपन्न पंजाबी बढ-चढ कर भाग लेते हैं। अगर लुधियाना का एक व्यापारी 15.5 लाख रुपये का अनूठा मोबाइल फोन नंबर के लिए चर्चा के केंद्र में है तो यहां ऐसे कम से कम 100 लोग हैं जिन्होंने इस तरह के अनूठे नंबर हासिल करने के लिए 1 लाख रुपये से 10 लाख रुपये खर्च किए हैं।

संपन्नता के लिए जाने जाने वाले पंजाबियों पर स्वप्निल और वीआईपी नंबर हासिल करने का जैसे जुनून छाया हुआ है। दिखावटीपन की इस होड़ में वे मोबाइल कंपनियों की मुस्कराहट बढ़ा रहे हैं। मोबाइल कंपनियां इसका बढ़-चढ़कर फायदा उठा रही हैं। सरकारी कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) भी इस माहौल का भरपूर फायदा उठा रही है और उसने इस सप्ताह अनूठे नंबरों के दीवानों को वीआईपी नंबर थमा कर करीब एक करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई की है। वीआईपी फोन नंबर 9864000005 हासिल करने के लिए एक व्यक्ति ने 9 लाख रुपया खर्च किया है वहीं मोबाइल नंबर 9864000018 और 9864000001 क्रमश: 8.5 लाख और 7.5 लाख रुपये में बिके हैं।

बीएसएनएल के एक अधिकारी का कहना है कि हमने इन वीआईपी नंबरों के लिए पंजाब के लोगों की बढ़ती ललक को ध्यान में रखकर ऐसे अनूठे नंबर गढ़े हैं। उन्होंने कहा कि पहले इस तरह के वीआईपी और अनूठे नंबर मंत्रियों, नेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों, उद्योगपतियों और विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों को दिए जाते थे, लेकिन अब इस होड़ में सामान्य संपन्न लोग भी शामिल हो गए हैं। अधिकारी ने कहा कि पहले इस तरह के नंबर मुफ्त दिए जाते थे, लेकिन अब जब ऐसे नंबरों के लिए जबर्दस्त होड़ शुरू हो गयी है तो हमने मार्केटिंग की अपनी नीति बदल ली है।

लुधियाना के व्यापारी अमित मल्होत्रा ने जुलाई में हच कंपनी से 15 लाख रुपये में 9780000000 नंबर खरीदा था। उन्होंने ऑनलाइन नीलामी के जरिए यह नंबर खरीदा था। मल्होत्रा कहते हैं कि इस नंबर से मैं बेहद खुश हूं। यह नंबर खरीदने के लिए मैंने अपने दोस्तों और संबंधियों से पैसा भी उधार लिया। इस सप्ताह बीएसएनएल सीरीज का 9864100000 नंबर 3.50 लाख रुपये में बिका। गौरतलब है कि पंजाब के लोग वीआईपी कार नंबरों को खरीदने पर भी भारी-भरकम रकम खर्च करते हैं।

Tuesday, September 18, 2007

कंप्यूटर के क्षेत्र में एक नया प्रयोग - 2

विया टेक्नोलाजीज ने छोटे आकार के पर्सनल कम्प्यूटर, डिजीटल मनोरंजन और नेटवर्क के उत्पादों में विंडो विस्ता से चलने वाला विया इपीआईए एसएन मदरबोर्ड लांच किया है। इसकी एक खास विशेषता यह है कि इसमें कम बिजली की खपत होती है एवं यह आवाज भी कम करता है।

इस नये आधुनिक 1.8 गिगार्हज स्पीड वाले सी 7 प्रोसेसर नेटवर्क, डिजीटल साईनबोर्ड और अन्य तकनीक उत्पादों को लेकर प्रसिद्ध है। कंपनी माइक्रोस्फोट के विस्ता साफ्टवेयर के उपयुक्त है। हर कंप्यूटर में कूलिंग पंखे लगे होते है। कंप्यूटर के आधुनिकरण से उन्हें ठंडा करने में आसानी होती है।

कंपनी के उपाध्यक्ष डेनियल वू के अनुसार विश्व भर में कंप्यूटरों के आकार कम हो रहे हैं। हमारे इस उत्पाद से लोगों को काफी आसानी होगी। इसमें पंखे नहीं होने के कारण बिजली की भी बचत होगी तथा ध्वनि भी कम होगी।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें :

VIA Technologies, Inc
New Delhi
V.K.Arora Ph 09811153833

Friday, September 14, 2007

उडिया साहित्य के जनक को भुला दिया गया है


उन्हें उस आंदोलन का सूत्रपात करने का श्रेय जाता है जिसने भाषायी आधार पर देश में पहली बार किसी राज्य के गठन का रास्ता साफ किया। आधुनिक उडिया साहित्य के जनक कहे जाने वाले इस शख्स की विरासत आज उपेक्षा की मार झेल रही है। आधुनिक उडिया साहित्य के जनक और भाषायी आधार पर देश में प्रथम राज्य के गठन की राह बनाने वाले फकीर मोहन सेनापति का पुश्तैनी घर और बगीचा उपेक्षा की मार झेल रहा है।

शोधकर्ताओं और साहित्य प्रेमियों का मानना है कि फकीर मोहन सेनापति की विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने की गंभीर कोशिश नहीं हो रही है। आधुनिक उडिया समाज में फकीर मोहन को व्यासकवि के नाम से भी जाना जाता है। १८४३ में जन्मे व्यासकवि ने १९१८ में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। जब फकीर मोहन डेढ वर्ष के थे, उनके पिता का निधन हो गया था। फकीर मोहन ने 'मो मातृभाषा मोते श्रेष्ठ' (मेरी मातृभाषा मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ है) का उद्घघोष किया था। उनके इसी इजहार से देश में भाषा के नाम पर पहली बार किसी राज्य के गठन का रास्ता साफ हुआ। १९३६ में उडीसा का भाषायी आधार पर गठन हुआ। व्यासकवि को उडिया पुनर्जागरण का सूत्रपात करने वाले लोगों में से एक माना जाता है।

जिस व्यासकवि ने अपने साहित्यिक अवदान से अपने समाज की इतनी सेवा की, आज उनकी विरासत खतरे में है। राजधानी भुवनेश्वर से २०० किलोमीटर दूर बालासोर जिले के मलिकाशपुर गांव में उनके घर की जिस कदर उपेक्षा हो रही है, वह बेहद दुखद है। उन्होंने लोगों में आत्मसम्मान की भावना फैलाने में कोई कसर नहीं छोडी थी, लेकिन आज उनकी विरासत खतरे में है। उनके जीर्ण-शीर्ण घर को जिस तरीके से पुस्तकालय, म्यूजियम के रूप में तब्दील किया गया है, वह हास्यास्पद है। वर्षों तक उनका यह घर उपेक्षा की मार झेलता रहा और जब उसकी मरम्मत की गयी और उसकी शक्ल बदली गयी तो मौलिकता ही गायब हो गयी। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि यह परिसर उनकी याद में समर्पित नहीं है। इसकी मूल पहचान खत्म हो गयी है और इसमें कुछ देवताओं की प्रतिमाएं लगा दी गयी हैं। कहीं से भी देखने से नहीं लगता कि यह व्यासकवि का घर है।

व्यासकवि फकीर मोहन सेनापति आधुनिक उड़िया कथा-साहित्य के जनक माने जाते हैं। उनकी कहानी तत्कालीन साहित्यिक पत्रिका ‘बोधदायनी’ में छपी थी। दुर्भाग्यवश वह पत्रिका और ‘लछमनिया’ कहानी भी आज इतिहास के गर्भ में समा गयी हैं।

लोगों का कहना है कि इस घर की जिस हास्यास्पद तरीके से मरम्मत की गयी है, वह अपने आपमें एक मिसाल है कि कैसे देश का सांस्कृतिक विभाग काम कर रहा है। घर के कई स्थानों से पानी का रिसाव दूर से ही देखा जा सकता है। यही हाल उनके गार्डन का है। यहां कई जगह सुंदर नक्काशी की गई थी जो आज गायब हो चुकी है। इस गार्डन की देखभाल के लिए एक माली नियुक्त किया गया था, लेकिन फिलहाल इसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। इससे यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है कि राज्य प्रशासन इस साहित्य हस्ती की विरासत के संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं है।

Wednesday, September 12, 2007

कंप्यूटर के क्षेत्र में एक नया प्रयोग...........

पर्सनल कंप्यूटर निर्माता OQO " UPMC मॉडल 02 " बाजार में उतारेगी

पर्सनल कंप्यूटर का उपयोग करने वाले के लिए यह एक खुशखबरी की तरह है। मात्र 450 ग्राम वजन वाला पर्सनल कंप्यूटर अब बाजार में आने वाला है। यह सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होगा। यह 1.4 AMBPS की गति से काम करेगा।

इसमें आप 120 जीबी तक बढ़ा कर अपना काम आगे बढ़ा सकते हैं। यह इसकी सबसे बड़ी खूबी होगी। दरअसल क्षमताओं को आगे बढ़ाना पर्सनल कंप्यूटर का सबसे बड़ा काम होता है।

मॉडल 02 का नया रूप मोबाईल पेशेववरों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। खासकर इंटरनेट और अन्य सुविधाओं को लेकर उत्सुक लोगों के लिए कंपनी यह सबसे रोचक काम करने जा रही है।

VIA का यह अवार्ड विजेता संस्करण लोगों को बेहद पसंद आएगा। कंपनी के उपाध्यक्ष (कॉरपोरेट मार्केटिंग) रिचर्ड ब्राउन ने बताया कि हमें इस बात की खुशी है कि अब इस प्रकार के कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होने कहा कि इस प्रकार के मॉडल काफी लोकप्रिय साबित होंगे।

OQO के विपणन और गठबंधन के वरिष्ट उपाध्यक्ष बॉब रॉसिन कहते हैं कि यह मोबाइल पेशेववरों के लिए यह मॉडल उपयोगी साबित होगा। इसमें एक साथ कई खूबियां हैं।

जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं-

http://www.ultramobilelife.com/index.php?option=com_content&task=view&id=496

Technologies, Inc
Contact V।K.Arora : 9811153833

Monday, September 10, 2007

हे सडक देवता हमारी रक्षा करना!

अगर मंगलवार के दिन आप आगरा की सडकों पर घूमने निकलें तो महिलाओं को सडक पर पूजा करते देख आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दरअसल, ताज नगरी आगरा में सडकों की पूजा की प्रवृत्ति इन दिनों जोर पकड रही है। लोग यात्रा पर निकलने से पहले सडक हादसे से बचने के लिए कुमकुम, पेडा, चंदन, फूल आदि से सडक की पूजा करते हैं।

सडक पर जुटने वाली महिलाएं सडक देवता से अपने संबंधियों की प्राण रक्षा की प्रार्थना करती हैं। ये महिलाएं अपने संबंधियों सडक हादसे से बचने के लिए सडक की पूजा करती हैं। उन्हें विश्वास है कि इससे सडकों पर उनके परिजनों व उनकी रक्षा होगी। खासकर कुछ हालिया सडक हादसों के बाद यहां सडक की पूजा की प्रवृत्ति अधिक जोर पकडने लगी है। ग्वालियर रोड के नजदीक रहने वाली सरोज का कहना है कि हर रोज मंगलवार की सुबह उनकी जैसी कुछ महिलाएं इस हाईवे पर आती हैं और सडक को धोकर वहां फूल, चंदन आदि से पूजा करती हैं। सडक की एक छोटी पट्टी को पवित्र जल से धोने के बाद वहां स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है और सडक देवता को कुमकुम, पेडा, चंदन, फूल आदि से पूजा जाता है। यहां जुटने वाली महिलाएं सडक देवता से अपने संबंधियों की प्राण की रक्षा की प्रार्थना करती हैं।

ऐसा नहीं है कि ग्वालियर रोड पर ही ऐसा नजारा देखा जाता है। शहर के नहराइच, रतनपुरा और यहां तक कि कमला नगर जैसी पॉश कॉलोनियों में भी महिलाओं को सडक की पूजा करते देखा जाता है। यहां तक कि हाईवे के किनारे स्थित गांव के लोग भी सडक पूजा में आस्था रखने लगे हैं। यहां के हिन्दू पुजारियों का कहना है कि अगर यातायात पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए पुख्ता कदम नहीं उठा सकती है तो हम भगवान से प्रार्थना क्यों न करें। पुलिस के मुताबिक ताजमहल की नगरी आगरा में रोजाना कम से कम एक सडक हादसा जरूर होता है जिनमें से ५० फीसदी हादसे भुक्तभोगी के लिए जानलेवा साबित होते हैं। १९८५ में जहां आगरा में महज ४० हजार वाहन हुआ करते थे, आज उनकी संख्या बढकर ४ लाख हो गयी है। एक गृहिणी पुष्पा झा को हर मंगलवार को सडक की पूजा करते देखा जा सकता है। उसका कहना है कि अगर ऐसा करने से मेरे पति की रक्षा होती है तो मैं ऐसा क्यों न करूं?

लोग यात्रा पर निकलते समय कई अन्य तरह के टोटके भी करते हैं। यदि कोई व्यक्ति यात्रा पर निकल रहा हो और बिल्ली रास्ता काट जाए या खाली बाल्टी या बरतन दिख जाए तो वह कुछ देर के लिए वापस आ जाता है। घर में उसे कुछ पानी पीने को दिया जाता है तथा माथे पर राख का टीका लगवा कर पुन: यात्रा पर निकलता है।

Friday, September 7, 2007

प्रेमी संग रोमांस कर वापस लौटी 'सावित्री'


पिछले सप्ताह अपनी प्रेमी के संग भागी 'सावित्री' आखिरकार अपने पर लौट आई है। सावित्री उस हथिनी का नाम है जो कुछ दिन पहले एक पश्चिम बंगाल के ओलम्पिक सर्कस के परिसर से निकल कर झारखंड के एक हाथी के साथ भाग गयी थी।

रायगंज के कुमारबाजार में ओलम्पिक सर्कस के टेंट से अपने प्रेमी हाथी के साथ फरार होने वाली २६ वर्षीया हथिनी सावित्री जंगल में रोमांस के बाद अब वापस लौट आई है। २९ अगस्त की रात्रि को यह प्रेम दीवानी हथिनी झारखंड के एक हाथी के साथ भाग गयी थी। एक सप्ताह तक हाथी के साथ मौज-मस्ती के बाद यह हथिनी वापस लौट आई है। सर्कस के कर्मचारियों ने इस हथिनी के वापस लौटने की उम्मीद छोड दी थी, लेकिन इस हथिनी ने वापस लौट कर अपनी वफादारी का परिचय दिया।

सर्कस के कर्मचारियों की खुशी का उस वक्त ठिकाना न रहा जब सावित्री को उन्होंने बुधवार की शाम अपने प्रेमी के साथ देखा। पिछले कुछ दिनों से वन विभाग की एक टीम इस प्रेमी जोडे पर नजर रख रही थी। जब इस टीम ने इस जोडे को देख कर शोर मचाया तो हथिनी का प्रेमी वहां से फरार हो गया। बांकुरा के एक संभागीय वन अधिकारी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हमने बांकुरा के जंगल में एक तालाब के पास इस हथिनी को देखा था। हमारे कर्मचारियों ने हथिनी को चारों ओर से घेर लिया था। उसके प्रेमी को उसके समीप नहीं फटकने देने के लिए ढोल और शंख भी बजाए गए थे।

सावित्री के सामने उसके महावत कलीमुद्दीन शेख को लाया गया। सावित्री ने कलीमुद्दीन को पहचान लिया। इस महावत ने कहा कि मुझे मालूम था कि सावित्री अपने साथी से ऊब जाएगी और जल्द वापस हमारे पास लौट आएगी। उन्होंने कहा कि सावित्री कभी जंगल में रहने की आदी नहीं थी। वह कुछ ही दिनों में कमजोर हो गयी है। महावत के मुताबिक साबित्री सर्कस लौट कर खुश है क्योंकि पिछले २० वर्षों से वह इस सर्कस का हिस्सा रही है। सर्कस के कर्मचारी अपनी खुशी छिपा नहीं पा रहे हैं। कर्मचारियों ने कहा कि सावित्री इस सर्कस की बेटी की तरह है और मुझे उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में साबित्री दर्शकों की भीड खींचने लगेगी। वह मेरे सर्कस की स्टार रही है। वैसे, अब इस रोमांटिक हथिनी को पहले जितनी आजादी नहीं मिलेगी और उस पर कडी निगरानी रखी जाएगी। दूसरी हथिनियों पर निगरानी भी बढा दी गयी है।

Tuesday, September 4, 2007

जहां आसान नहीं है कब्रिस्तान में जगह पाना


जहां लोग रहने के लिए एक आशियाने की व्यवस्था करने में लंबे अरसे तक भाग-दौड करते रहते हैं वही उनकी मौत के बाद उनके दफन के लिए जमीन का छोटा टुकडा भी बडी मुश्किल से नसीब हो पाता है। यह हाल है रूस में कब्रिस्तानों का। रूसी शहरों में मुर्दों के लिए जमीन ढूंढना जिंदा इंसान के लिए घर की व्यवस्था करने से कहीं अधिक महंगा हो गया है। यहां तक कि दूरदराज के कब्रिस्तानों में मॉस्को वासियों को अपने परिजनों को दफनाने पर अमूमन ६ लाख रूबल यानी २३,४०० डॉलर खर्च करना पडता है जो एक औसत मॉस्कोवासी की पूरी साल की कमाई के बराबर है।

आम लोगों की बात तो दूर, जब इस साल बसंत ऋतु के दौरान मॉस्को के एक कब्रिस्तान में पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और संगीतकार मिस्टिस्लाव रोस्ट्रोपोविच के पार्थिव अवशेषों को दफन करने की बारी आई तो इन दोनों महान हस्तियों को भी यहां जमीन मयस्सर नहीं हुई। मॉस्को में कब्रिस्तानों में जमीन की भारी किल्लत से परेशान होकर कई लोग अपने परिजनों के शवों को दफन के बजाय अब जलाने लगे हैं। मीडिया की खबरों के अनुसार कई कब्रिस्तानों में दफन की रस्म में १००,००० से ४००,००० रूबल के बीच खर्च होता है जिसमें दिनोंदिन भारी बढोत्तरी हो रही है।

रूस के प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि नोवोदेविची या क्रेमलिन के पास स्थित कब्रिस्तानों में महान हस्तियों के पार्थिव शरीर को भी दफनाने के लिए जमीन ढूंढना आसान काम नहीं है। आम लोगों की बात ही अलग है। दूसरे प्रमुख रूसी शहरों में कब्रिस्तानों में अपने परिजनों के लिए एक टुकडा जमीन ढूंढना लोगों के लिए टेढी खीर बनता जा रहा है। यही वजह है कि इन शहरों में मुर्दों को दफनाना इतना अधिक महंगा हो ग्या है।

कब्रिस्तानों पर बढते दबाव को देखते हुए मॉस्को नगर प्रशासन ने लोगों को लाशों की अंत्येष्टि के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया है। अखबारों में इन दिनों बडे बडे विज्ञापन छपते हैं और लोगों को लाशों को चिता के हवाले कर अस्थि कलश को जमीन में दफन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। वही दूसरी ओर इससे चर्च को ईसाइयत पर खतरा मंडराने का भी डर सताने लगा है। रसियन ऑर्थोडक्स चर्च ने मृतक ईसाइयों की अस्थियां कलश में रख कर दफन किए जाने के नए चलन को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। ऑर्थोडक्स चर्च ने इसे ईसाई-विरोधी रस्म करार दिया है।

एक आकलन के मुताबिक रूस में लाशों को जलाने का चलन अब जोर पकडने लगा है। यूरोपीय संघ के देश जर्मनी में तो करीब ५० फीसदी शवों को जलाया जाने लगा है। दफन रस्म विभाग के प्रमुख अधिकारी कहते हैं कि मॉस्को में किसी मुर्दे को मात्र आठ वर्ष या इससे कुछ अधिक समय तक के लिए ही कब्र नसीब हो सकती है। करीब ७० कब्रिस्तान तो मुर्दो से पहले ही भर चुके हैं। इनमें एक भी शव दफनाने के लिए जगह नहीं बची है। मॉस्को में ४ शवदाह केंद्र बन चुके हैं। इनकी संख्या बढाए जाने की योजना है।