Sunday, October 21, 2007

सैकडों रावण सज-धज कर तैयार हैं दहन के लिए

राजधानी दिल्ली विजयादशमी के रंग में डूब चुकी है। दिल्ली में दशहरा को लेकर बच्चे, बुजुर्ग, महिलाओं सभी में उत्साह देखते ही बन रहा है। लोगों को रावण, मेघनाद एवं कुंभकर्ण के धू धू कर जलते पुतलों को देखने का बेसब्री से इंतजार है।

दिल्ली में दशहरा पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। कई जगहों पर रामलीला का मंचन किया जा रहा है। २१ अक्टूबर को विजयादशमी के दिन दिल्ली में रावण, मेघनाद एवं कुंभकर्ण के सैकडों विशालकाय पुतलों क जलाए जाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। कई रामलीला समितियां दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में रामलीलाओं का मंचन कर रही हैं, जिनमें लोग बढ-चढ कर भाग ले रहे हैं।

दशहरा के दौरान बनने वाले इन तीनों पुतलों पर कम से कम १२ हजार रुपये खर्च जबकि अधिकतम सीमा तय नहीं है। राजधानी में विभिन्न जगहों पर सैकडों पुतले खडे किए गए हैं। पुतला बनाने के कारोबार से जुडे एक कारीगर के अनुसार पुतलों की कीमत इनके आकार के हिसाब से रखी गयी है। पिछली बार की तुलना में इस बार पुतला बनाने पर अधिक खर्च आ रहा है। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार बांस, कागज आदि की कीमतें तेजी से बढी हैं। पुतला बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला कागज १० रुपये किलो से बढकर १६ रुपये किलो हो गया है।

यह त्यौहार सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी माना जाता है। रामलीला के मंचन से लेकर लंकापति रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बनाने के कार्य में हिन्दू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम भी बढ-चढ कर भाग लेते हैं। कुछ मुस्लिम कारीगर तो दशकों से पुतला बनाने के कारोबार में लगे हुए हैं। गौरतलब है कि भारत में विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि दशहरा के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।

गौरतलब है कि राजधानी में आजाद मंडी, रमेश नगर, टैगोर गार्डन, करावल नगर, नांगलोई आदि में पुतला बनाने का व्यापक कारोबार होता रहा है। पुतला बनाने का कारोबार सैकडों कारीगरों एवं मजदूरों की जीविका का जरिया रहा है। ये लोग दशहरा से कई दिन पहले से ही पुतले बनाने के काम में जुट जाते हैं। यहां बनने वाले पुतलों की मांग तेजी से बढ रही है। दिल्ली में इस कारोबार की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आस-पास के राज्यों ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी यहां पुतले बनवाने के ऑर्डर दिए जाते रहे हैं।

दशहरा के दिन पुतला दहन देखने के लिए सडकों पर लोगों की भारी भीड जुटती है। इस दौरान पुलिस को यातायात जाम से निपटने के लिए भारी मशक्कत करनी पडती है। इस अवसर पर पुतलों को गौर से देखने के लिए लोग इमारतों की छतों, दीवारों, वाहनों की छतों आदि पर भी खडे होने से परहेज नहीं करते हैं।

Sunday, October 7, 2007

कहीं भी मूतने वालो अब हो जाओ सावधान !

'यहां पेशाब करना मना है', 'देखो गधा मूत रहा है' या 'यहां मत मूत गधे के पूत' जैसे वाक्य आपको विभिन्न दीवारों पर लिखे नजर आ सकते हैं. लेकिन दीवारों को गंदा होने से बचाने के लिये ये वाक्य कितने कारगर एवं प्रभावी साबित होते हैं? इस सब के बावजूद अधिकांश लोग साफ-सुथरी दीवारों आदि पर पेशाब करने या पान खाकर थूकने से परहेज नहीं करते. ऐसे लोगों से निपटने के लिये कुछ संगठनों एवं भवन मालिकों ने अपनी बाहरी दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.

राजधानी दिल्ली में दीवारों को पेशाब एवं थूक से बचाने के लिये ऐसी दीवारों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें लगी देखी जा रही हैं. मेहरौली-बदरपुर रोड पर स्थित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) कार्यालय की दर्जनों मीटर लंबी बाउंडरी को पान खाकर थूकने वालों एवं पेशाब करने वालों से बचाने के लिये इस पर कई देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाई गई हैं और यह प्रयोग काफी हद तक सफल भी हो रहा है. ITBP कार्यालय की विशाल बाउंडरी बिल्कुल साफ-सुथरी दिखती है. लोगों में यह धारणा व्याप्त है कि देवी-देवताओं की तस्वीरों, मूर्तियों, पीपल के पेड आदि के पास पेशाब करने या थूकने से उनका अहित हो सकता है और इसी भय से लोग इन स्थलों को गंदा करने से परहेज करते हैं.

गौरतलब है कि यह प्रयोग दिल्ली में कई जगह अपनाया जाने लगा है. दीवारों को गंदा होने से बचाने के लिये कई भवन मालिकों ने इन पर देवी-देवताओं की तस्वीरों वाली टाइल्स लगवाई हैं. जाहिर है यह उपाय अनोखा जरूर लग सकता है लेकिन इससे दीवारों को पेशाब एवं थूक से बचाने में काफी मदद मिल रही है.