Friday, August 31, 2007

हमारे नेताओं को भी अच्छी लग रही है 'चक दे इंडिया'


'चक दे इंडिया' जैसी लाजवाब फिल्म के निर्माता आदित्य चोपड़ा, निर्देशक शिमित अमीन, अभिनेता शाहरुख खान और इसके लेखक जयदीप साहनी को बधाई दी जानी चाहिए कि इन्होंने मिलकर हॉकी जैसे खेल पर इतनी बढिया फिल्म बनाई है. यह फिल्म आम दर्शकों के अलावा नेताओं एवं मन्त्रियों को भी बेहद पसंद आ रही है.

एक मंत्री महोदय अभिनेता शाहरुख खान की भूमिका वाली फिल्म ‘चक दे इंडिया’ की सफलता से इतने अधिक प्रभावित हैं कि वे प्रधानमंत्री को भी यह फिल्म देखने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री भी वक्त निकाल कर यह फिल्म देखेंगे। ये मंत्री महोदय हैं पीमओ में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान. उन्होने जब से यह फिल्म देखी है वे अभिभूत हैं। इस फिल्म के बारे में उनक कहना है कि यह फिल्म प्रेरणादायक है हॉकी खेल में जान फूंकने की क्षमता रखती है.


गौरतलब है कि जब यह फिल्म बनाने की योजना बनायी जा रही थी तब पृथ्वीराज चौहान खेल मंत्रालय के मुखिया हुआ करते थे. चौहान इस फिल्म की योजना से इतने अधिक प्रभावित थे कि फिल्म की शूटिंग के दौरान ही अपने कई दोस्तों के साथ नेशनल स्टेडियम पहुंच गए. तब उन्होंने अधिकारियों को इस फिल्म के निर्माण में योगदान करने का निर्देश दिया था.

उनका कहना है कि इस फिल्म ने हॉकी को सुर्खियों में ला दिया है. फिल्म के कलाकारों ने इसमें अच्छा काम किया है. इसमें शाहरुख का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा है. मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री भी यह फिल्म देखें. प्रधानमंत्री मनमोहन भले ही फिल्मों के अधिक शौकीन नहीं रहे हैं लेकिन उन्होंने पीमओ में अभिनेता संजय दत्त की भूमिका वाली फिल्म लगे रहो मुन्नाभाई देखी थी. प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी पर बनी फिल्म भी देखी थी.

जाहिर खेल विषयों पर बनी ऐसी फिल्मों से खेल प्रेमियों एवं खिलाडियों का उत्साह बढेगा. मैं एक बार फिर 'चक दे इंडिया' की टीम को बधाई देता हूं.

Thursday, August 30, 2007

क्या आप १५ हजार रुपये में लैपटॉप खरीदने का सपना देखते रहे हैं?


क्या आप १५ हजार रुपये में लैपटॉप खरीदने का सपना देखते रहे हैं? यहां का एक उद्यमी आम लोगों को १५ हजार रुपये में लैपटॉप उपलब्ध कराने के मिशन पर लगा हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही बाजार में वे इतना कम कीमती लैपटॉप उपलब्ध कराने में सफल रहेंगे।

मुंबई स्थित एलाइड कम्प्यूटर्स इंटरनेशनल (एशिया) लिमिटेड (एसीआई) के प्रबंध निदेशक हिरजी पटेल ने कहा कि मैं आम व्यक्ति तक इतना सस्ता लैपटॉप पहुंचाना चाहता हूं। इस नए लैपटॉप की कीमत १५ हजार रुपये होगी और इसका वजन एक किलोग्राम से भी कम होगा। यह भारत में उपलब्ध मौजूदा लैपटॉप से काफी छोटा व हलका होगा। पटेल सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के विशेषज्ञ हैं। उनकी इच्छा है कि लैपटॉप औरनोटबुक जैसे उत्पाद आम लोगों की पहुंच के दायरे में होने चाहिए। पटेल वैमानिकी के भी विशेषज्ञ हैं और अतीत में वे जीईसी एवियोनिक्स के गाइडेंस विपन डिवीजन एवं ब्रिटिश एसरोस्पेस पीएलसी के शोध एवं विकास विभाग में मिसाइल वैज्ञानिक की हैसियत से काम कर चुके १५ हजार रुपये में लैपटॉप उपलब्ध कराना अविश्वसनीय समझा जा सकता है, लेकिन पटेल के दावे को नकारा नहीं जा सकता।

पटेल ने २००२ में एशियाई कंपनी की स्थापना की थी और २००४ में उन्होंने भारतीय बाजार में ३० हजार रुपये में और २००५ में २० हजार रुपये में लैपटॉप उपलब्ध कराया। उन्होंने कहा कि इस साल हम अपनी उत्पादन क्षमता १० हजार यूनिट से बढा कर एक लाख यूनिट प्रति साल करना चाहते हैं। हम महाराष्ट्र के बसई और गुजरात के गांधीनगर स्थित अपने निर्माण संयंत्रों का विस्तार करना चाहते हैं। हम अपने असेंबलिंग कारोबार का और विस्तार करना चाहेंगे। उन्होंने बताया कि बसई में एक विपणन एवं सर्विस सेंटर भी स्थापित किया जाएगा।

Tuesday, August 28, 2007

मेरी लापता पत्नी को लाओ और एक लाख रुपये ले जाओ

'मेरी लापता पत्नी को लाओ और एक लाख रुपये ले जाओ' यह कहना है रेलवे इंजीनियर राजीव कुमार का. १५ दिन पहले यानी १५ अगस्त को जहां एक ओर भारत की स्वतंत्रता की ६० वी वर्षगांठ मनायी जा रही थी, वहीं दूसरी ओर इंजीनियर साहब ट्रेन में लापता हुई अपनी नयी नवेली पत्नी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे.

घटना उस वक्त घटी जब राजीव और उनकी ३० वर्षीया पत्नी रानी सिंह पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुडी से पटना आ रही राजधानी एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे.रानी बांका के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुभाष चंद्र की पुत्री हैं. राजीव एवं रानी ने १४ अगस्त की रात कटिहार रेलवे स्टेशन पर खाना खाया था. इसके बाद वे दोनों ट्रेन में अलग अलग बर्थ पर सो गये. लेकिन जैसे ही सुबह ५ बजे राजीव की आंख खुली तो रानी को सीट पर नहीं पाया. राजीव ने मोकामा स्टेशन पर रेलवे पुलिस में इस बारे में एक कम्पलेंट दर्ज करायी. लेकिन पुलिस रानी को ढूंढ पाने में असफल रही. पत्नी के वियोग में टूट चुके राजीव ने पुलिस की असफलता के बाद विभिन्न स्टेशनों एवं महत्वपूर्ण स्थानों पर पोस्टर एवं बैनर चिपकाने शुरू कर दिये.

पुलिस के अलावा रानी की तलाश में रानी के भाई एवं अन्य संबंधी लगे हुए हैं. राजीव ने यह घोषणा की है कि जो व्यक्ति रानी के बारे में सूचना देगा, वे उसे १००,००० रुपये का इनाम देंगे.यह दंपती १० अगस्त को हनीमून मनाने के लिये दार्जीलिन्ग रवाना हुआ था. राजीव एवं रानी इसी वर्ष अप्रैल में परिणय सूत्र में बंधे थे, लेकिन कुछ ही महीने बाद राजीव को पत्नी विरह का सामना करना पड रहा है.

Monday, August 27, 2007

श्रद्घांजलि

शनिवार का दिन था। शाम के ७.४५ बज रहे थे। लोग शहर के मशहूर गोकुल चाट भंडार में स्वादिष्ट चाट भंडार का लुत्फ उठा रहे थे। लोगों को यह जरा भी आभास नहीं था कि वे दोबारा चाट का स्वाद चखने के लिए जिंदा रह पाएंगे। कुछ ही क्षण बाद यह खुशी मातम में तब्दील हो गयी और कइयों के सपने अधूरे रह गए।

गौरतलब है कि २५ अगस्त की शाम को राजधानी हैदराबाद के प्रसिद्घ गोकुल चाट भंडार एवं मौज-मस्ती के लिए प्रसिद्घ लुंबिनी पार्क में बम धमाके हुए जिनमें लगभग ४२ लोगों की मौत हो गयी एवं ५० से अधिक इसमें घायल हो गए। लुंबिनी पार्क में स्थानीय पर्यटकों के अलावा अन्य राज्यों से भी बडी संख्या में पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। शनिवार को भी मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र से आए कुछ पर्यटकों के अलावा स्थानीय पर्यटक यहां मौजूद थे। शहर के दिल कहे जाने वाले हुसैनसागर झील के किनारे स्थित इस पार्क में हुए विस्फोट में १० लोगों की मौत हो गयी है एवं कई अन्य घायल हुए हैं। इसी तरह गोकुल चाट भंडार में चाट का मजा ले रहे लोगों की खुशियां क्षण भर में मातम में बदल गयीं। यहां हुए विस्फोट में करीब ३२ लोग मारे गए एवं दर्जनों घायल हो गए। इनमें कई प्रेमी युगल भी शामिल थे।

दहशतगर्द चाहे जिस धर्म या कौम के हों, लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि कोई भी धर्म इस कदर विवेकहीन व पागलपनपूर्ण रक्तपात की इजाजत नहीं देता। जाहिर है ऐसे में इंसान का खून बहा कर वे सबसे बडा अपराध ईश्वर के प्रति कर रहे हैं। इस बम हादसे के शिकार बने लोगों की आत्मा को शांति तो मिल जाएगी, लेकिन आतंकवादियों को शांति इसलिए नसीब नहीं होगी क्योंकि वे आत्मा खो चुके हैं। जाहिर है ऐसी आतंकवादी करतूतों की कडी निंदा की जानी चाहिए। विस्फोटों में मारे गए लोगों के परिजनों को इस दुखद वक्त में www.aawaj.blogspot.com की ओर से सांत्वना . . . .

Thursday, August 23, 2007

विदेशों में परचम लहराती भारतीय महिलाएं

विदेशों में अपने योगदान के लिए सराहे जाने वाले भारतीयों की कमी नहीं है. इन भारतीयों में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी हैं। इनमें से कुछ भारतीय महिलाओं से आपको परिचित करा रहे हैं -

श्रिति वडेरा:

भारतीय मूल की अर्थशास्त्री श्रिति वडेरा को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने कनिष्ठ अंतर्राष्ट्रीय विकास मंत्री नियुक्त किया है। इस जिम्मेदारी के तहत उन्हें भारत संबंधी मसलों से भी निपटना होगा। अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग में संसदीय अवर विदेश मंत्री के रूप में वडेरा की नियुक्ति को खास माना जा रहा है। उनकी नियुक्ति इसलिए पक्की मानी जा रही थी क्योंकि वे ब्राउन की करीबी रही हैं। अब वे अफ्रीका समेत कई अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर ब्राउन को सलाह देती रहेंगी।

युगांडा में जन्मी वडेरा का परिवार १९७० के दशक में भारत चला गया था और उसके बाद यह परिवार इंग्लैंड चला आया जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड के समरविले कॉलेज में राजनीति, दर्शन शास्त्र और अर्थशास्त्र की पढाई की। वे लंदन के वित्तीय जिले में कई आर्थिक और वित्तीय पदों पर रह चुकी हैं।
वे यूबीएस वारबर्ग नामक निवेश बैंक में १४ साल बिता चुकी हैं, जहां उनकी ड्यूटी के दायरे में ऋण पुनर्संरचना जैसे मुद्दों पर विकासशील देशों की सरकारों को सलाह देने जैसी जिम्मेवारी शामिल थी।

वडेरा कई वर्षों तक ऑक्सफैम की ट्रस्टी भी रह चुकी हैं। पिछले आठ वर्षों से वे गॉर्डन ब्राउन की सलाहकार के पद को सुशोभित करती रही हैं। साथ ही वे ब्राउन की आर्थिक सलाहकार परिषद की भी सदस्य रह चुकी हैं। इंटरनेशनल फाइनेंस फैसिलिटी फॉर इम्यूनाइजेशन नामक परियोजना के अस्तित्व के पीछे भी उनकी खास भूमिका थी जिसके अंतर्गत गेट्स फाउंडेशन की मदद से बॉन्ड की बिक्री से चार अरब डॉलर जुटाए जाने का लक्ष्य रखा गया। इसका इस्तेमाल ५० करोड बच्चों को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए किया जाना था।

वडेरा ब्राउन की विश्वस्त सलाहकार रही हैं। वे वित्त मंत्रालय और लंदन के वित्तीय जिले सीटी के बीच संपर्क सूत्र की भूमिका निभाती रही हैं। पिछले एक दशक में ब्राउन ने जो कुछ भी योगदान दिया है, उसके पीछे वडेरा की खास भूमिका रही है।

सिंथिया मलारवडी:
भारतीय मूल की सिंथिया मलारवडी की उम्र अभी महज २० साल है, लेकिन यह भारत के केरली मूल की यह महत्वाकांक्षी महिला स्विस संसद में अपनी जगह बनाना चाहती हैं और अक्टूबर में होने वाले चुनाव में किस्मत आजमाएंगी। स्विटजरलैंड की ग्रीन पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है। अगर मलारवडी चुनाव जीतती तो वे २०० सदस्यीय नेशनल एसेंबली की सदस्य बन जाएंगी। यह स्विस संसद का मुख्य चैम्बर है जिसे भारत की लोकसभा की तरह माना जा सकता है।

पेशे से बैंककर्मी मलारवडी पिछले दो वर्षों से सोलोथॉर्न नगरपालिका की निर्वाचित सदस्य रही हैं। पर्यावरण मुद्दों में गहरी दिलचस्पी और स्विटजरलैंड में विदेशी मूल के लोगों की समस्याओं ने उन्हें राजनीति की ओर आकर्षित किया। मलारवडी कार्बनिक खेती की जबर्दस्त पैरोकार हैं। वे चाहती हैं कि पौधों और वनस्पतियों की रक्षा इंसान की तरह ही की जानी चाहिए। मलारवडी अपने राजनीतिक करियर की प्राथमिकताओं को लेकर बिल्कुल स्पष्टवादी हैं।

केरल के अलपुझा जिले के पी. टी. राजन और अनम्मा दंपती की पुत्री मलारवडी का भारत से संबंध केरल तक ही सीमित है। वे दो-तीन वर्षों में एक बार अपने पुश्तैनी इलाके का दौरा अवश्य करती हैं। वे यह स्वीकार करती हैं कि उन्हें भारतीय खाना और खासकर मां के हाथ का बना खाना पसंद है। उन्ह भारतीय फिल्में देखना, भारतीय पोशाक व जेवरात पहनना पसंद है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश मैं भारत के बारे में जो कुछ भी जानती हैं, वह केरल तक ही सीमित है।

आशा श्रीनिवासन :

एक भारतीय अमेरिकी संगीत निर्देशक अमेरिका की नयी पीढी के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं। उन्हें अमेरिका की शीर्ष १५ महिला संगीतकारों की सूची में शामिल किया गया है। २६ वर्षीया आशा श्रीनिवासन ने मैरीलैंड विश्वविद्यालय से डॉक्टर की डिग्री ली है। उन्होंने न्यूयार्क में ऑर्केस्ट्रा ऑफ सट ल्यूक्स, जो अमेरिका का अग्रणी चैम्बर ऑर्केस्ट्रा है, द्वारा आयोजित नोटेबल वूमेन फेस्टिवल के सेलेब्रेशन ऑफ वूमेन कम्पोजर्स में कार्यक्रम पेश किया और इस आधार पर उन्हें शीर्ष संगीत निर्देशकों की सूची में शामिल किया गया। उन्होंने इस कार्यक्रम में अपनी मेधा का परिचय दिया। इस ऑर्केस्ट्रा को संगीत की दुनिया में खास प्रतिष्ठा हासिल है। श्रीनिवासन की रचना ‘दि रिवर नियर सवाथी’ को इसके लिए चुना गया। उन्होंने २० से ३० वर्ष की ६६ अन्य अमेरिकी संगीतकारों को पछाड कर इस सूची में अपनी जगह बनाई। यह प्रतियोगिता दिसंबर, २००६ में हुई।

उताह में जन्मी आशा की परवरिश अमेरिका और भारत में हुई है। उनकी संगीत रचनाएं दक्षिण भारतीय कर्नाटक संगीत से बेहद प्रभावित हैं। वैसे वे इसे अच्छी तरह नहीं जानतीं। लेकिन इस संगीत ने निश्चित रूप से उन्हें प्रभावित किया है। आशा मैरीलैंड विश्वविद्यालय में संगीत निर्देशन के क्षेत्र में पढाई कर रही हैं। वहां वे इलेक्ट्रानिक म्यूजिक का अध्यापन भी करती हैं। वर्ष २००६ में आशा को वालसोम प्रतियोगिता में एक चतुर्वाद्य कल्पिथा के लिए एक पुरस्कार मिला। साथ ही उन्हें प्रिक्सडी इटे कम्प्टीशन में बांसुरीवादन के लिए दूसरा पुरस्कार मिला। साथ ही उन्हें अपनी कम्प्यूटर संगीत रचना एलोन, डांसिंग के लिए भी पुरस्कार मिला। इसे २००५ में सीमस (सोसायटी फॉर इलेक्ट्राॅ-इकॉस्टिक म्यूजिक इन यूएस) में पेश किया गया था।


सीमा सिंह:
सीमा सिंह न्यूजर्सी प्रांत की राजनीति में अपना करतब दिखा रही हैं। सीमा सिंह न्यूजर्सी प्रांत के फेयर एंड क्लीन इलेक्शंस पायलट प्रोग्राम के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय अमेरिकी महिला उम्मीदवार बन गयी हैं। यह प्रोग्राम एक ऐसी सरकारी प्रणाली है जिसके तहत उम्मीदवारों को राजनीतिक चुनाव अभियान के लिए सरकार से वित्तीय सहायता मिलती है।

डिस्ट्रिक्ट कंस्टीचुएंसी से डेमोक्रेट पार्टी की उम्मीदवार सीमा सिंह ने जून में इसकी पुष्टि की कि उन्होंने इस पायलट प्रोग्राम के लिए क्वालीफाई करने के उद्देश्य से दस्तावेज सौंप दिया है। क्लीन इलेक्शंस प्रोग्राम के तहत सरकारी वित्तीय सहायता हासिल करने के इच्छुक उम्मीदवार को खास संख्या में पंजीकृत मतदाताओं से वित्तीय योगदान (अक्सर पांच डॉलर तक) हासिल करना पडता है। बदले में उम्मीदवार को सरकार से उसके चुनाव अभियान के लिए रकम दी जाती है और उम्मीदवार यह वादा करता है कि वह चुनाव अभियान के लिए निजी स्रोत से रकम नहीं जुटाएगा। एक बार जब न्यूजर्सी चुनाव कानून प्रवर्तन आयोग ने इन सभी ४०० वित्तीय योगदानों को प्रमाणित कर दिया तो सीमा सिंह को राज्य सरकार से चुनावी अभियान के लिए ४६ हजार डॉलर का अनुदान मिलेगा। यह चुनाव नवंबर में होने वाला है। ४५ वर्षीया सीमा सिंह १९८४ में न्यूजर्सी आई थीं और उन्होंने रटगर्स यूनिवर्सिटी और सेटन हॉल लॉ स्कूल से पढाई की। वे अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मामले की वकील रही हैं और उनका कार्य भारतीय और एशियाई समुदायों पर केन्द्रित रहा है।
२००२ में उन्हें तब बडी कामयाबी मिली जब वे न्यूजर्सी मंत्रिमंडल में जगह बनाने वाली पहली भारतीय बन गयीं।

Saturday, August 18, 2007

महिलाओं की आवाज

मीरा, शांति, कविता, मिथलेश . .। ये नाम हैं एक ऐसे अखबार की महिला पत्रकारों के, जो महिलाओं के हितों के लिए आवाज उठा रही हैं। देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं द्वारा खबर लहरिया नामक एक पाक्षिक अखबार निकाला जा रहा है जिसमें ये ग्रामीण महिलाएं बढ-चढकर भूमिका निभा रही हैं। अखबार के लिये सुर्खियां तैयार करने से लेकर प्रकाशन तक सभी काम ये महिलाएं खुद ही करती हैं। यह अखबार करीब २०० से अधिक गांवों में इन महिलाओं की आवाज बना हुआ है।

बुंदेली भाषा के इस अखबार ने कई सनसनीखेज खबरों का खुलासा किया है और विभिन्न मुद्दों पर प्रशासन को कटघरे में खडा किया है। साथ ही यह अखबार स्वास्थ्य व लैंगिक मुद्दों पर समाज का आईना बन चुका है। ये ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अपने घरों से निकल कर सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्घता की बदौलत अपनी आजीविका तलाशने की कोशिश की है। वे न सिर्फ अपनी जिंदगी संवार रही हैं बल्कि आसपास के लोगों की जिंदगी को भी नयी दिशा दे रही हैं।

दलित महिलाओं के एक समूह द्वारा निकाले जाने वाले आठ पृष्ठों के इस अखबार की दिलचस्प सुर्खियों वाली खबरों और इन महिला पत्रकारों के पर्दे के पीछे की दुनिया को दिल्ली स्थित एक फिल्मकार विशाखा दत्ता ने अपनी लघु फिल्म ताजा खबरः हॉट ऑफ द प्रेस में जगह दी है। ३० मिनट की यह फिल्म हाल ही में नयी दिल्ली में दिखायी गयी। यह फिल्म जितना इस अखबार पर फोकस करती है, उतना ही इन महिला पत्रकारों की टीम पर भी फोकस करती है। पिछले पांच वर्षों में इस अखबार की प्रसार संख्या ढाई हजार से अधिक हो गयी है और यह २ रुपये प्रति कॉपी बिकता है।

ये महिलाएं खबरें इकट्ठा करने के लिए विभिन्न गांवों का चक्कर लगाती हैं और अधिकांश समय उन्हें पैदल ही इन इलाकों का चक्कर लगाते देखा जाता है। वे पंचायतों, नौकरशाही, स्कूलों, अस्पतालों के बारे में खबरें जुटाती हैं। अधिकांश पत्रकारों के लिए, चाहे वे मुख्यधारा के ही क्यों न हों, खबरें जुटाना आसान नहीं होता। ऐसे में इन ग्रामीण महिला पत्रकारों को भी मुश्किलों का सामना करना पडता है। खबर लहरिया की संपादक मीरा का कहना हैं, ‘‘हमें समस्याओं का सामना करना पडता है। कई बार हमें सच का खुलासा करने के लिए धमकी भी दी जाती है।’’

मीरा आगे कहती हैं कि जब हमने टीबी की बीमारी के प्रकोप से जूझ रहे एक सुदूर गांव में लोगों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया नहीं कराए जाने की प्रशासन की लापरवाही का पर्दाफाश एक बैठक में किया तो अधिकारी हमारे खिलाफ हो गए। हमने वहां बैठे अधिकारियों की सच्चाई का पर्दाफाश कर दिया।
एक दूसरी महिला पत्रकार शांति का कहना है कि खबर लहरिया ने उनके जीवन को बदल दिया है। दूसरी दलित महिलाओं की तरह मुझे भी हर तरह की कठिनाई का सामना करना पड रहा था। आर्थिक दुश्वारी से लेकर पति द्वारा शारीरिक उत्पीडन जैसी समस्याओं से मैं जूझती रही। मैं नौकरानी की हैसियत से काम कर रही थी और पढ-लिख नहीं सकती थी, लेकिन जब से मैंने यहां काम करना शुरू किया है, मुझमें नया आत्मविश्वास जगा है। मैंने पढना और लिखना सीख लिया है और अब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गयी हूं। शांति ने इस अखबार से जुडने के बाद अपने पति को छोड दिया है और अब अपने ५ बच्चों के साथ अलग रहती है।

शांति की तरह दूसरी महिला पत्रकारों की कहानी भी साहस भरी है। एक और पत्रकार कविता, जो अखबार के बांदा संस्करण की संपादक है, की भी यही कहानी है। उसने भी इस मिशन में शामिल होने के बाद अपने पति को छोड दिया है, क्योंकि उसका पति उसका खयाल नहीं रखता था। अब वह स्वतंत्र जीवन जी रही है।

दूसरे पत्रकारों की तरह इन महिलाओं ने भी पत्रकारिता का गहन प्रशिक्षण लिया है। राजनीतिक विज्ञान में डिग्री की पढाई कर रही मीरा कहती हैं, ‘‘ऐसी नौकरी पर रखे जाने से पहले हमें प्रशिक्षित किया गया। कम्प्यूटर पर और पेजमेकर पर काम करने में भले ही हम सक्षम नहीं हैं, लेकिन बाकी सभी काम हम निपटा लेते हैं। हम यह काम भी सीखना चाहते हैं, लेकिन ऐसा कोई संस्थान नहीं है जो हमें पेजमेकर की जानकारी दे सके।’’

पिछले पांच वर्षों में इस अखबार ने खास पहचान बना ली है और लोग अब अपनी मर्जी से इन महिलाओं के पास सूचना लेकर आते हैं। यहां तक कि अखबार को विज्ञापन भी मिलता है। मार्च, २००४ में खबर लहरिया से जुडी महिलाओं को उत्कृष्ट मीडियाकर्मी के तौर पर मीडिया फाउंडेशन की ओर से प्रतिष्ठित चमेली देवी जैन पुरस्कार दिया गया।

शांति ने कहा, ‘‘जब हमने पुरस्कार पाया तो हमारे परिवार वालों का रुख हमारे प्रति अधिक सहयोगात्मक हो गया। हम ब्रेकिंग न्यूज देते हैं। हमने विधवाओं के लिए पेंशन वितरण में धोखाधडी करने वाले एक मैनेजर के बारे में खबर छाप दी तो इस मैनेजर को बर्खास्त कर दिया गया।’’
यूं तो ये महिला पत्रकार खुद भी इस अखबार की मार्केटिंग करती हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए कुछ एजेंट भी बहाल कर रखे हैं। अब इस अखबार की प्रतियां प्रखंड मुख्यालयों की छोटी दुकानों और चाय दुकानों और यहां तक कि सुदूर गांवों में भी उपलब्ध रहती हैं।

इस अखबार के लिए कोष की व्यवस्था दिल्ली स्थित निरंतर नामद एक संगठन करता है। यह संगठन इन पत्रकारों को नियमित रूप से संपादकीय और प्रोडक्शन सहायता देता है। इसके अलावा संवाददाताओं को प्रशिक्षण भी देता है और वित्तीय सहायता भी दी जाती है। जाहिर है ऐसे प्रयासों से साहसिक पत्रकारिता के इतिहास में एक और प्रेरक अध्याय जुडेगा।

Friday, August 17, 2007

दुनिया जिसे कहती मिट्टी का खिलौना................

दुनिया की गजब कहानी देखी

हर चीज यहां पर आती-जाती देखी


जो आ के ना जाए वो बुढ़ापा देखा

जा के फिर ना आए वो जवानी देखी

Sunday, August 12, 2007

खोज: कब शुरू कारनामों का लेखा-जोखा ?

यह दुनिया तरह-तरह के अजूबों एवं कारनामों से भरी पडी है। ऐसे लोगों की तादाद काफी अधिक है जो अपनी प्रतिभा एवं बहादुरी के करतब दिखाकर इतिहास रचने में सफल हुए हैं। राजनीति, खेल, संगीत या किसी भी क्षेत्र में नाम कमाने वाले लोगों को ‘दि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ एवं ‘लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में शामिल किया जाता रहा है। हर वर्ष दुनिया भर के हजारों लोग इस उम्मीद में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स लिमिटेड से संफ करते हैं कि उनका नाम इसमें शामिल हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रिकॉर्ड बनाने का यह सिलसिला कब शुरू हुआ था?

आर्थर गिनीज ने आयरलैंड के डबलिन शहर में सेंट जेम्स गेट में १७५९ में ‘गिनीज ब्रेवरी’ की स्थापना की। १९३० के दशक तक गिनीज ब्रेवरी की भारी-भरकम प्रतियां ब्रिटेन के सभी सरकारी कार्यालयों में उपल?ध थीं। ब्रेवरी हमेशा अच्छे विचारों को बढावा देने की तलाश में रहता था और किसी क्षेत्र में नाम कमाने वाले व्यक्ति को लोगों की नजर में लाता था। ब्रेवरी के प्रबंध निदेशक सर ह्यूज बीवर १९५१ में एक पार्टी में गए। पार्टी में मौजूद लोगों के साथ उनकी इस बात पर बहस छिड गई कि यूरोप में सबसे तेज रफ्तार से उडने वाला पक्षी कौन है। पार्टी में उन्हें एहसास हुआ कि गिनीज ब्रेवरी में इस तरह के प्रश्नों का जवाब उपल?ध है और इस पुस्तक को लोगों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाया जा सकता है। उनका यह सोचना सही साबित हुआ।

सर ह्यूज का यह सपना उस समय वास्तविकता में त?दील हुआ जब लंदन में तथ्य अन्वेषण एजेंसी चलाने वाले जुडवां भाइयों - नॉरिस ऑर रॉस - को दुनिया भर के रिकॉर्डों को संकलित करने का ठेका दिया गया। इस तरह ‘दि गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ का जन्म हुआ। गिनीज बुक का पहला संस्करण १९५५ में प्रकाशित हुआ और गिनीज बुक ब्रिटेन में सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक बनी।

इसके बाद से गिनीज बुक एक जाना-पहचाना नाम हो गई। अभी तक दुनिया के ७७ देशों और ३८ भाषाओं में गिनीज बुक की ८ करोड से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। सफलता की यह कहानी अभी भी जारी है। गिनीज बुक का मुख्यालय लंदन में स्थित है। अभी भी हर वर्ष दुनिया भर के हजारों लोग इस उम्मीद में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स लिमिटेड से संफ करते हैं कि उनका नाम इसमें शामिल हो जाएगा।

‘लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ को भी इस होड में पीछे नहीं माना जा सकता। आज लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स सफलता की सीढियां चढते हुए काफी ख्याति अर्जित कर चुकी है। गिनीज बुक की तरह लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स भी रिकॉर्डों की दुनिया में महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंच गई है।

चीन के ली जियां हुआ ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें १७ दिसंबर, १९९८ को अपने कानों के सहारे ५० किलो वजन उठाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया।

क्या आप ‘किलर टमेटो अटैक’ के बारे में जानते है? स्पेन के बूनेल शहर में हर वर्ष अगस्त में यह समारोह आयोजित किया जाता है। इसमें शामिल लोग एक-दूसरे पर टमाटरों से प्रहार करते हैं। वर्ष १९९९ में हुए इस समारोह में १२० टन टमाटर का प्रयोग किया गया था। इस समारोह में २५ हजार से भी अधिक लोग शामिल हुए थे। कहा जाता है कि यह परंपरा शहर के एक फार्मासिस्ट द्वारा शुरू की गई थी।

जर्मनी के म्यूनिख में अक्टूबर, १९९९ में आयोजित पारंपरिक ‘बीयर फेस्टिवल’ में ७० लाख लोग शामिल हुए थे। इस समारोह में लगभग ६० लाख लीटर बीयर का इस्तेमाल किया गया था।

लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाले लुधियाना के लाल सिंह गर्छा एवं उनकी पत्नी सुरजी कौर भारत में एकमात्र ऐसे पति-पत्नी हैं जिनकी लंबाई सबसे कम है। गर्छा की लंबाई ३ फुट ७ इंच एवं सुरर्जी कौर की लंबाई सिर्फ ३ फुट ५ इंच है।

राजनीतिक क्षेत्र में भी कई ऐसे रिकॉर्ड बनते रहे हैं जिन्हें गिनीज बुक या लिमका बुक में जगह दी जाती रही है। १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति के रथ पर सवार कांग्रेस ने रिकॉर्ड ११,५२,२१,०७८ वोट प्राप्त किए और ५१३ संसदीय सीटों में से ४१२ सीटें जीत कर लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह बनाई।

इसी तरह विश्वनाथ प्रताप सिंह ने २० जुलाई, १९९० को अपनी पार्टी में संकट पैदा होने के फलस्वरूप दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में ढाई घंटे लंबे संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर एक रिकॉर्ड बनाया। इस संवाददाता सम्मेलन में ८०० से भी अधिक पत्रकार शामिल हुए थे।

बात कानों द्वारा अधिक वजन उठाने की हो, दांतों द्वारा ट्रेक्टर या रेल के इंजन को खींचने की या फिर मोटर साईकिल द्वारा जम्प लगाने की, इन कारनामों में कभी-कभी जोखिम भी उठाने पडते हैं। हाल ही में उ?ार प्रदेश में कलाबाजी के ऐसे ही कार्यकम में बाबूराम एवं उसकी पत्नी दोनों ही लोहे के एक गोल छल्ले में निकलने का करतब दिखा रहे थे कि अचानक गर्दन दबने से उसकी पत्नी की मौत हो गई थी। बाबूराम भी बहादुरी का यह कारनामा दिखाकर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराने का सपना पाले हुआ था।

Saturday, August 11, 2007

लॉस एंजिल्स में इंडिया स्पलेंडर महोत्सव शुरू

भारत की स्वतंत्रता की ६०वीं वर्षगांठ पर होने वाले समारोह का शुभारंभ आज ६ दिवसीय इंडिया स्पलेंडर महोत्सव से हो गया है। लॉस एंजिल्स में आयोजित इस समारोह का शुभारंभ शाहरुख खान की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ के प्रदर्शन से हुआ है।

६ दिवसीय इस समारोह के दौरान भारतीय सिनेमा, कला, फैशन, नृत्य, संगीत, अध्यात्म पर आधारित कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। १५ अगस्त को एक भव्य कार्यक्रम के साथ इस समारोह का समापन हो जाएगा। इस दौरान कई सर्वश्रेष्ठ समकालीन भारतीय फिल्में दिखाई जाएंगी। भारतीय समूह एमकॉर्प ग्लोबल के प्रमुख भूपेन्द्र कुमार मोदी ने कहा कि हमारा उद्देश्य भारतीय संस्कृति के सभी आयामों से दुनिया को अवगत कराना है। तेजी से फल-फूल रहा हमारा भारतीय फिल्मोद्योग हमारी संस्कृति की पहचान बन गया है। हम अपने इतिहास के इस सुखद अध्याय की याद में बहुआयामी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा एक प्रभावशाली मनोरंजन उद्योग बन गया है और हमें खुशी है कि मुंबई एवं लॉस एंजिल्स के फिल्म निर्माताओं के बीच वैचारिक आदान-प्रदान हो रहा है। इस कार्यक्रम की सह-आयोजक कंपनी इंटरनेशनल क्रिएटिव मैनेजमेंट के चेयरमैन एवं सीईओ जेफरी बर्ग ने कहा कि भारतीय सिनेमा की महत्ता को हम समझते हैं। हमें खुशी है कि इसी बहाने हम वैचारिक आदान-प्रदान कर रहे हैं और कला क्षेत्र में सहयोग बढा रहे हैं। भारतीय टेनिस स्टार और जाने-माने हॉलीवुड फिल्म प्रोड्यूसर अशोक अमृतराज यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया स्कूल ऑफ थिएटर, फिल्म एंड टेलीविजन एवं आर्टवाला के सहयोग से आयोजित इंडिया स्पलेंडर समारोह के सांस्कृतिक राजदूत हैं। एमग्लोबल ट्रस्ट के चेयरमैन डॉ. एम ने कहा कि इंडिया स्पलेंडर समारोह में भारत की जीवंतता से अवगत कराएगा। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच कला क्षेत्र में सहयोग बढाने की दिशा में यह बेहद अहम कदम है। इस महोत्सव में कई भारतीय फिल्मकारों की हालिया फिल्में दिखाई जाएंगी। इसमें प्रख्यात अभिनेता और फिल्म निर्माता स्वर्गीय राज कपूर को विशेष श्रद्घांजलि दी जाएगी। आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर का व्याख्यान इसका एक खास आकर्षण होगा। वहीं भारतीय डिजाइन सुनीत वर्मा अपने परिधानों को पेश करेंगे।

Sunday, August 5, 2007

उडीसा में आज भी डाइन

एक ओर जहां भारत में आधुनिकतावादी एवं पश्चिमी संस्कृति हावी होती जा रही है, वहीं आज के कम्प्यूटराइज्ड युग में भी ग्रामीण समाज अंधविश्वास एवं दकियानूसी के जाल से मुक्त नहीं हो पाया है। देश के कई हिस्सों में जादू-टोना, काला जादू, डाइन जैसे शब्दों का महत्व अभी भी बना हुआ है। उडीसा भी इस अंधविश्वास से अछूता नहीं है।

‘जादुई राज्य’ के नाम से विख्यात उडीसा में अंधविश्वास का इतिहास काफी पुराना रहा है। आज के आधुनिक माहौल में भी उडीसा में डाइन को पीट-पीट कर मार डालने जैसी सनसनीखेज घटनाएं जारी हैं। उडीसा में हर वर्ष दर्जनों महिलाओं को डाइन करार देकर उनकी हत्या कर दी जाती है। इन महिलाओं में अधिकांश विधवा या अकेली रहने वाली महिलाएं शामिल होती हैं। हालांकि इन महिलाओं का लक्ष्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं होता है, लेकिन ओझा (जादू-टोना करने वाले व्यक्ति) द्वारा किसी महिला को डाइन करार देने के बाद ग्रामीण समुदाय इनका बहिष्कार करने एवं इनकी हत्या करने को आमादा हो जाता है।

एक गैर-सरकारी संगठन के अनुसार भारत में हर वर्ष लगभग २०० महिलाओं को डाइन होने के संदेह में मौत के घाट उतार दिया जाता है। असम पुलिस के आंकडों के अनुसार पिछले ५ वर्षों में पूर्वोत्तर भारत में डाइन होने के संदेह में कम से कम २०० महिलाओं को मौत के घाट उतारा जा चुका है। असम में इसी महीने २४ अप्रैल को एक मां और उसकी बेटी को डाइन होने के शक में मौत के घाट उतार दिया गया। इन दोनों के सिर काट कर नदी में फेंक दिए गए। उडीसा ही नहीं, देश के अन्य राज्यों में भी डाइन होने के संदेह में महिलाओं की हत्याएं की जाती रही हैं। इन राज्यों में बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। एक आंकडे के अनुसार झारखंड के आदिवासी जिलों में १९९०-१९९६ की अवधि में डाइन होने के संदेह में लगभग ४०० महिलाओं की हत्या की गयी थी। विश्लेषकों का मानना है कि आदिवासी-बहुल राज्यों में साक्षरता दर का कम होना भी अंधविश्वास का एक प्रमुख कारण है। यहां महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

राज्य में ओझाओं द्वारा डाइन द्वारा करार दिए जाने के बाद महिला के शारीरिक शोषण का सिलसिला शुरू हो जाता है। ओझा इन महिलाओं को लोहे के गर्म सरिए से दागते हैं, उनकी पिटाई करते हैं, उन्हें गंजा करते हैं और फिर इन्हें नंगा कर गांव में घुमाया जाता है। यहां तक कि इस कथित डाइन महिला को मल खाने के लिए भी विवश किया जाता है। उदाहरण के लिए किसी विधवा द्वारा पडोसी या किसी संबंधी के घर में प्रवेश करने के बाद यदि उस घर का कोई सदस्य बीमार पड जाता है या उसकी मौत हो जाती है तो इस विधवा को डाइन समझ लिया जाता है और इसकी सूचना तुरंत स्थानीय ओझा को दे दी जाती है। बीमारी फैलने, मवेशियों के मरने और खेतों में खडी फसल को नुकसान होने जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए अक्सर इन अकेली रहने वाली महिलाओं एवं वृद्घ दंपतियों को दोषी माना जाता रहा है और उन्हें ग्रामीणों के हमले का शिकार होना पडता है।

दूसरी ओर राज्य की पुलिस का मानना है कि इस तरह की घटनाओं के पीछे अक्सर जमीन-जायदाद की मुख्य भूमिका होती है। पुलिस रिकॉर्डो के अनुसार ऐसी घटनाएं भी सामने आती रही हैं जिनमें किसी विधवा या अकेली रहने वाली महिला की जमीन-जायदाद हडपने के लिए उस महिला को डाइन करार दे दिया जाता है एवं उसकी हत्या कर दी जाती है और बाद में उसकी संप?ा पर क?जा कर लिया जाता है। ऐसी घटनाओं के पीछे इस महिला के संबंधी या पडोसियों की मुख्य भूमिका होती है। इस काम में भी ओझाओं की मदद ली जाती है। आदिवासी-बहुल उडीसा में अंधविश्वास की तेज बढो?ारी में इन ओझाओं की खास भूमिका रही है। इनका प्रथम लक्ष्य होता है पैसा ठगना। ये ओझा महिलाओं को भूत-प्रेत का शिकार बताकर अच्छी रकम ऐंठते हैं। ओझा पुरुष एवं औरत दोनों हो सकते हैं। आदिवासी जिलों, खासकर सुंदरगढ, कोरापुट, मयूरभंज, क्योंझर आदि में अंधविश्वास का अधिक बोलबाला है। ग्रामीण समुदाय के लोग किसी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर पर कम, इन ओझाओं पर अधिक विश्वास करते हैं। ये ओझा इन लोगों की बीमारी का जादू-टोने के माध्यम से इलाज का दावा करते हैं। इन्हें एक ताबीज पहनने को दिया जाता है। इसके साथ-साथ कुछ तंत्र-मंत्र करने को भी कहा जाता है।

कुछ समय पहले ही पुरी जिले के पार्सीपाडा गांव के एक युवक रमाकांत ने अंधविश्वास से प्रेरित होकर रोग से छुटकारा पाने के लिए अपनी जीभ काटकर भगवान शिव को चढा दी। उडीसा के एक आदिवासी गांव की आरती की कहानी तो और भी दर्दनाक है। पिछले वर्ष एक ओझा द्वारा आरती की हत्या का मामला सुर्खियों में आया था। जादू-टोने के सिलसिले में आरती का इस ओझा के यहां आना-जाना था। एक दिन ओझा ने जब आरती के साथ शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की तो आरती ने इसका विरोध किया। उसके इनकार के बाद इस ओझा ने आरती के साथ बलात्कार किया और बाद में उसकी हत्या कर दी थी। उडीसा के कई आदिवासी जिलों में नाबालिग बच्चों की बलि एवं पशु बलि की प्रवृ?ा भी यहां जारी है। सुबर्णपुर में बलि महोत्सव खास चर्चा का केंद्र रहा है। बलि महोत्सव १४ दिनों तक चलता है। इस महोत्सव में एक महिला बरूआ देवी की भूमिका निभाती है। इसमहिला का चयन महोत्सव के मुख्य पुजारी करते हैं। यह महिला बलि चढाए गए पशुओं का रक्त पीती है। यदि यह महिला ऐसा नहीं करती है या संकोच दिखाती है तो उसे पशुओं का रक्त पीने को बाध्य कर दिया जाता है। महोत्सव के आयोजकों एवं अन्य लोगों का मानना है कि ऐसा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

हालांकि जिला प्रशासन द्वारा इस तरह के महोत्सवों की अनुमति नहीं दी जाती है। राज्य में सक्रिय कुछ पशु अधिकारवादी संगठनों ने भी पशु बलि के खिलाफ आवाज उठाई है, लेकिन इसके बावजूद जिले के कई आदिवासी गांवों में इस तरह के आयोजनों की खबरें सुनने को मिलती रही हैं। ये लोग दशकों से जारी अपनी परंपराओं को समाप्त नहीं करना चाहते हैं।

Wednesday, August 1, 2007

मेरी बात

आवाज के सहारे ....शब्दों से मेरी बात