यह कहानी एक ऐसे बिहारी धावक की है जो पिछले १२ वर्षों विकलांगता से जूझ रहा है। यह शख्स पेशे से वकील है और आज शारीरिक विकलांगता के कारण दो डग चलने में भी असमर्थ है। इस शख्स का नाम है देवेन्द्र प्रसाद।
जब देवेन्द्र प्रसाद १९७९ में पूरे बिहार में ८०० मीटर की दौड में अव्वल आए थे, तो उनमें पूरी दुनिया को जीत लेने का जज्बा था। इसी दौड ने पेशे से वकील इस शख्स को एक ऐसी बीमारी का मरीज बना दिया जिसके कारण वे पिछले १२ वर्षों से बैठने में पूरी तरह असमर्थ हैं। वे अपनी दिनचर्या या तो लेट कर या खडे होकर निपटाते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय तक की कागजी कवायद के बावजूद उन्हें कहीं से मदद नहीं मिली।
पटना के कदमकुआं इलाके स्थित पीरमोहानी के रहने वाले देवेन्द्र प्रसाद आज खाना-पीना, शौच, यात्रा, सब कुछ लेट कर या खडे होकर निपटाने के लिए अभिशप्त हैं। उनका कूल्हा इस कदर जाम हो गया है कि वे बिल्कुल नहीं बैठ सकते। वे मायूस स्वर में कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे मेरी रग रग में ताले जड दिए गए हैं। मैं पिछले १२ वर्षों से बैठा नहीं हूं।
जो व्यक्ति कभी मैदान पर सरपट दौडा करता था, वह आज दो डग चलने के लिए भी खुद को घसीटता है। सिविल कोर्ट पटना में वकील देवेन्द्र प्रसाद को कोर्ट जाने के लिए भी रिक्शे की सवारी लेट कर या खडे होकर करनी पडती है। एन्कलोजिंग स्पोंडीलाइटिस बीमारी की चपेट में आने की उनकी कहानी वहीं से शुरू होती है जब वे सफल धावक हुआ करते थे। १९७९ में प्रांतीय दौड प्रतियोगिता में वे अव्वल तो आए, लेकिन उसी वक्त उनके पांव के अंगूठे में चोट लग गयी।
१९८०-८१ में कमर में मामूली दर्द शुरू हुआ। १९९३ तक उनका कूल्हा इस परेशानी की चपेट में आ गया। १९९७ में एम्स में उन्हें एनक्लोजिंग स्पोंडीलाइटिस का मरीज बताया। एम्स के डॉ. एस. रस्तोगी ने इसका निदान ऑपरेशन बताया। देवेन्द्र प्रसाद ने आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री राहत कोष से मदद लेनी चाही। एम्स ने कूल्हा पूरी तरह बदलने का खर्च १.२६ लाख रुपये बताया। प्रधानमंत्री कार्यालय के सेक्शन ऑफीसर पी. जी. जार्ज ने प्रसाद को पत्र (पत्र संख्या ८२ (६८७)/९८-पीएमएफ) के जरिए पूरा दस्तावेज सौंपने को कहा। प्रसाद ने ऑपरेशन की तारीख, आय प्रमाण पत्र आदि का ब्यौरा ३-३-९८ को पीएमओ को भेजा। दिल्ली की आहूजा सर्जीकल्स कंपनी ने हिप रीप्लेसमेंट के खर्च का ब्यौरा दिया।
एम्स की ओर से रस्तोगी और स्वास्थ्य मंत्रालय के तत्कालीन अवर सचिव चरणजीत सिंह को यह सूचित किया गया कि मरीज को ऑपरेशन के लिए १५ जुलाई, १९९८ को भर्ती किया जाएगा, इसलिए प्रधानमंत्री सहायता कोष से एम्स निदेशक के नाम १.२६ लाख रुपये का चेक भेज दिया जाए। यह मदद प्रसाद को कभी नहीं मिली। इसी बीच एक बार फिर उनके साथ क्रूर मजाक हुआ और उनका पैर टूट गया। आज उनकी पत्नी बमुश्किल सिलाई कर २०००-३००० रुपये कमा लेती हैं। समय पर फीस नहीं चुकाने के कारण उनकी सतानों को कई बार स्कूल से बाहर किया जा चुका है।
४५ वर्षीय देवेन्द्र प्रसाद का कहना है कि मैं अपनी जिंदगी की लाश ढो रहा हूं। खुद किसी का खयाल आता है, लेकिन इस पडाव पर परिवार को छोड कर कैसे चला जाऊं? उनका पता है - देवेन्द्र प्रसाद, तीसरी गली, पीरमोहानी, पो.ओ. - कदमकुआ, जिला-पटना (बिहार)।
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