Saturday, August 18, 2007

महिलाओं की आवाज

मीरा, शांति, कविता, मिथलेश . .। ये नाम हैं एक ऐसे अखबार की महिला पत्रकारों के, जो महिलाओं के हितों के लिए आवाज उठा रही हैं। देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं द्वारा खबर लहरिया नामक एक पाक्षिक अखबार निकाला जा रहा है जिसमें ये ग्रामीण महिलाएं बढ-चढकर भूमिका निभा रही हैं। अखबार के लिये सुर्खियां तैयार करने से लेकर प्रकाशन तक सभी काम ये महिलाएं खुद ही करती हैं। यह अखबार करीब २०० से अधिक गांवों में इन महिलाओं की आवाज बना हुआ है।

बुंदेली भाषा के इस अखबार ने कई सनसनीखेज खबरों का खुलासा किया है और विभिन्न मुद्दों पर प्रशासन को कटघरे में खडा किया है। साथ ही यह अखबार स्वास्थ्य व लैंगिक मुद्दों पर समाज का आईना बन चुका है। ये ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अपने घरों से निकल कर सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्घता की बदौलत अपनी आजीविका तलाशने की कोशिश की है। वे न सिर्फ अपनी जिंदगी संवार रही हैं बल्कि आसपास के लोगों की जिंदगी को भी नयी दिशा दे रही हैं।

दलित महिलाओं के एक समूह द्वारा निकाले जाने वाले आठ पृष्ठों के इस अखबार की दिलचस्प सुर्खियों वाली खबरों और इन महिला पत्रकारों के पर्दे के पीछे की दुनिया को दिल्ली स्थित एक फिल्मकार विशाखा दत्ता ने अपनी लघु फिल्म ताजा खबरः हॉट ऑफ द प्रेस में जगह दी है। ३० मिनट की यह फिल्म हाल ही में नयी दिल्ली में दिखायी गयी। यह फिल्म जितना इस अखबार पर फोकस करती है, उतना ही इन महिला पत्रकारों की टीम पर भी फोकस करती है। पिछले पांच वर्षों में इस अखबार की प्रसार संख्या ढाई हजार से अधिक हो गयी है और यह २ रुपये प्रति कॉपी बिकता है।

ये महिलाएं खबरें इकट्ठा करने के लिए विभिन्न गांवों का चक्कर लगाती हैं और अधिकांश समय उन्हें पैदल ही इन इलाकों का चक्कर लगाते देखा जाता है। वे पंचायतों, नौकरशाही, स्कूलों, अस्पतालों के बारे में खबरें जुटाती हैं। अधिकांश पत्रकारों के लिए, चाहे वे मुख्यधारा के ही क्यों न हों, खबरें जुटाना आसान नहीं होता। ऐसे में इन ग्रामीण महिला पत्रकारों को भी मुश्किलों का सामना करना पडता है। खबर लहरिया की संपादक मीरा का कहना हैं, ‘‘हमें समस्याओं का सामना करना पडता है। कई बार हमें सच का खुलासा करने के लिए धमकी भी दी जाती है।’’

मीरा आगे कहती हैं कि जब हमने टीबी की बीमारी के प्रकोप से जूझ रहे एक सुदूर गांव में लोगों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया नहीं कराए जाने की प्रशासन की लापरवाही का पर्दाफाश एक बैठक में किया तो अधिकारी हमारे खिलाफ हो गए। हमने वहां बैठे अधिकारियों की सच्चाई का पर्दाफाश कर दिया।
एक दूसरी महिला पत्रकार शांति का कहना है कि खबर लहरिया ने उनके जीवन को बदल दिया है। दूसरी दलित महिलाओं की तरह मुझे भी हर तरह की कठिनाई का सामना करना पड रहा था। आर्थिक दुश्वारी से लेकर पति द्वारा शारीरिक उत्पीडन जैसी समस्याओं से मैं जूझती रही। मैं नौकरानी की हैसियत से काम कर रही थी और पढ-लिख नहीं सकती थी, लेकिन जब से मैंने यहां काम करना शुरू किया है, मुझमें नया आत्मविश्वास जगा है। मैंने पढना और लिखना सीख लिया है और अब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गयी हूं। शांति ने इस अखबार से जुडने के बाद अपने पति को छोड दिया है और अब अपने ५ बच्चों के साथ अलग रहती है।

शांति की तरह दूसरी महिला पत्रकारों की कहानी भी साहस भरी है। एक और पत्रकार कविता, जो अखबार के बांदा संस्करण की संपादक है, की भी यही कहानी है। उसने भी इस मिशन में शामिल होने के बाद अपने पति को छोड दिया है, क्योंकि उसका पति उसका खयाल नहीं रखता था। अब वह स्वतंत्र जीवन जी रही है।

दूसरे पत्रकारों की तरह इन महिलाओं ने भी पत्रकारिता का गहन प्रशिक्षण लिया है। राजनीतिक विज्ञान में डिग्री की पढाई कर रही मीरा कहती हैं, ‘‘ऐसी नौकरी पर रखे जाने से पहले हमें प्रशिक्षित किया गया। कम्प्यूटर पर और पेजमेकर पर काम करने में भले ही हम सक्षम नहीं हैं, लेकिन बाकी सभी काम हम निपटा लेते हैं। हम यह काम भी सीखना चाहते हैं, लेकिन ऐसा कोई संस्थान नहीं है जो हमें पेजमेकर की जानकारी दे सके।’’

पिछले पांच वर्षों में इस अखबार ने खास पहचान बना ली है और लोग अब अपनी मर्जी से इन महिलाओं के पास सूचना लेकर आते हैं। यहां तक कि अखबार को विज्ञापन भी मिलता है। मार्च, २००४ में खबर लहरिया से जुडी महिलाओं को उत्कृष्ट मीडियाकर्मी के तौर पर मीडिया फाउंडेशन की ओर से प्रतिष्ठित चमेली देवी जैन पुरस्कार दिया गया।

शांति ने कहा, ‘‘जब हमने पुरस्कार पाया तो हमारे परिवार वालों का रुख हमारे प्रति अधिक सहयोगात्मक हो गया। हम ब्रेकिंग न्यूज देते हैं। हमने विधवाओं के लिए पेंशन वितरण में धोखाधडी करने वाले एक मैनेजर के बारे में खबर छाप दी तो इस मैनेजर को बर्खास्त कर दिया गया।’’
यूं तो ये महिला पत्रकार खुद भी इस अखबार की मार्केटिंग करती हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए कुछ एजेंट भी बहाल कर रखे हैं। अब इस अखबार की प्रतियां प्रखंड मुख्यालयों की छोटी दुकानों और चाय दुकानों और यहां तक कि सुदूर गांवों में भी उपलब्ध रहती हैं।

इस अखबार के लिए कोष की व्यवस्था दिल्ली स्थित निरंतर नामद एक संगठन करता है। यह संगठन इन पत्रकारों को नियमित रूप से संपादकीय और प्रोडक्शन सहायता देता है। इसके अलावा संवाददाताओं को प्रशिक्षण भी देता है और वित्तीय सहायता भी दी जाती है। जाहिर है ऐसे प्रयासों से साहसिक पत्रकारिता के इतिहास में एक और प्रेरक अध्याय जुडेगा।

2 comments:

हरिराम said...

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाशाली भारतीय नारियों का यह विवरण सभी को पढ़ना चाहिए, विशेषकर महिलाओं को, ताकि उनसे प्रेरणा ले सकें।

Sanjeet Tripathi said...

बहुत खूब!!
सराहनीय ही नही बल्कि प्रेरणादायक!!
शुक्रिया यह खबर यहां उपलब्ध करवाने के लिए!!