Sunday, August 12, 2007

खोज: कब शुरू कारनामों का लेखा-जोखा ?

यह दुनिया तरह-तरह के अजूबों एवं कारनामों से भरी पडी है। ऐसे लोगों की तादाद काफी अधिक है जो अपनी प्रतिभा एवं बहादुरी के करतब दिखाकर इतिहास रचने में सफल हुए हैं। राजनीति, खेल, संगीत या किसी भी क्षेत्र में नाम कमाने वाले लोगों को ‘दि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ एवं ‘लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में शामिल किया जाता रहा है। हर वर्ष दुनिया भर के हजारों लोग इस उम्मीद में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स लिमिटेड से संफ करते हैं कि उनका नाम इसमें शामिल हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रिकॉर्ड बनाने का यह सिलसिला कब शुरू हुआ था?

आर्थर गिनीज ने आयरलैंड के डबलिन शहर में सेंट जेम्स गेट में १७५९ में ‘गिनीज ब्रेवरी’ की स्थापना की। १९३० के दशक तक गिनीज ब्रेवरी की भारी-भरकम प्रतियां ब्रिटेन के सभी सरकारी कार्यालयों में उपल?ध थीं। ब्रेवरी हमेशा अच्छे विचारों को बढावा देने की तलाश में रहता था और किसी क्षेत्र में नाम कमाने वाले व्यक्ति को लोगों की नजर में लाता था। ब्रेवरी के प्रबंध निदेशक सर ह्यूज बीवर १९५१ में एक पार्टी में गए। पार्टी में मौजूद लोगों के साथ उनकी इस बात पर बहस छिड गई कि यूरोप में सबसे तेज रफ्तार से उडने वाला पक्षी कौन है। पार्टी में उन्हें एहसास हुआ कि गिनीज ब्रेवरी में इस तरह के प्रश्नों का जवाब उपल?ध है और इस पुस्तक को लोगों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाया जा सकता है। उनका यह सोचना सही साबित हुआ।

सर ह्यूज का यह सपना उस समय वास्तविकता में त?दील हुआ जब लंदन में तथ्य अन्वेषण एजेंसी चलाने वाले जुडवां भाइयों - नॉरिस ऑर रॉस - को दुनिया भर के रिकॉर्डों को संकलित करने का ठेका दिया गया। इस तरह ‘दि गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ का जन्म हुआ। गिनीज बुक का पहला संस्करण १९५५ में प्रकाशित हुआ और गिनीज बुक ब्रिटेन में सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक बनी।

इसके बाद से गिनीज बुक एक जाना-पहचाना नाम हो गई। अभी तक दुनिया के ७७ देशों और ३८ भाषाओं में गिनीज बुक की ८ करोड से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। सफलता की यह कहानी अभी भी जारी है। गिनीज बुक का मुख्यालय लंदन में स्थित है। अभी भी हर वर्ष दुनिया भर के हजारों लोग इस उम्मीद में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स लिमिटेड से संफ करते हैं कि उनका नाम इसमें शामिल हो जाएगा।

‘लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ को भी इस होड में पीछे नहीं माना जा सकता। आज लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स सफलता की सीढियां चढते हुए काफी ख्याति अर्जित कर चुकी है। गिनीज बुक की तरह लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स भी रिकॉर्डों की दुनिया में महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंच गई है।

चीन के ली जियां हुआ ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें १७ दिसंबर, १९९८ को अपने कानों के सहारे ५० किलो वजन उठाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया।

क्या आप ‘किलर टमेटो अटैक’ के बारे में जानते है? स्पेन के बूनेल शहर में हर वर्ष अगस्त में यह समारोह आयोजित किया जाता है। इसमें शामिल लोग एक-दूसरे पर टमाटरों से प्रहार करते हैं। वर्ष १९९९ में हुए इस समारोह में १२० टन टमाटर का प्रयोग किया गया था। इस समारोह में २५ हजार से भी अधिक लोग शामिल हुए थे। कहा जाता है कि यह परंपरा शहर के एक फार्मासिस्ट द्वारा शुरू की गई थी।

जर्मनी के म्यूनिख में अक्टूबर, १९९९ में आयोजित पारंपरिक ‘बीयर फेस्टिवल’ में ७० लाख लोग शामिल हुए थे। इस समारोह में लगभग ६० लाख लीटर बीयर का इस्तेमाल किया गया था।

लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाले लुधियाना के लाल सिंह गर्छा एवं उनकी पत्नी सुरजी कौर भारत में एकमात्र ऐसे पति-पत्नी हैं जिनकी लंबाई सबसे कम है। गर्छा की लंबाई ३ फुट ७ इंच एवं सुरर्जी कौर की लंबाई सिर्फ ३ फुट ५ इंच है।

राजनीतिक क्षेत्र में भी कई ऐसे रिकॉर्ड बनते रहे हैं जिन्हें गिनीज बुक या लिमका बुक में जगह दी जाती रही है। १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति के रथ पर सवार कांग्रेस ने रिकॉर्ड ११,५२,२१,०७८ वोट प्राप्त किए और ५१३ संसदीय सीटों में से ४१२ सीटें जीत कर लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह बनाई।

इसी तरह विश्वनाथ प्रताप सिंह ने २० जुलाई, १९९० को अपनी पार्टी में संकट पैदा होने के फलस्वरूप दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में ढाई घंटे लंबे संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर एक रिकॉर्ड बनाया। इस संवाददाता सम्मेलन में ८०० से भी अधिक पत्रकार शामिल हुए थे।

बात कानों द्वारा अधिक वजन उठाने की हो, दांतों द्वारा ट्रेक्टर या रेल के इंजन को खींचने की या फिर मोटर साईकिल द्वारा जम्प लगाने की, इन कारनामों में कभी-कभी जोखिम भी उठाने पडते हैं। हाल ही में उ?ार प्रदेश में कलाबाजी के ऐसे ही कार्यकम में बाबूराम एवं उसकी पत्नी दोनों ही लोहे के एक गोल छल्ले में निकलने का करतब दिखा रहे थे कि अचानक गर्दन दबने से उसकी पत्नी की मौत हो गई थी। बाबूराम भी बहादुरी का यह कारनामा दिखाकर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराने का सपना पाले हुआ था।

2 comments:

हरिराम said...

हिन्दी में यह जानकारी प्रदान करके आपने स्तुत्य प्रयास किया है।

Madhu said...

हिन्दि मे खोज!
http://www.yanthram.com/hi/

हिन्दि खोज अपका सैटु के लिये!
http://hindiyanthram.blogspot.com/

हिन्दि खोज आपका गुगुल पहेला पेजि के लिये!
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