Tuesday, November 6, 2007

आईआईटीएफ-2007 में दिखेगी पूर्वोत्तर की बहुरंगी संस्कृति की झलक

बुनियादी ढांचे का विकास, पुलों का निर्माण, चिकित्सा शिविर, शैक्षिक संस्थान, सामुदायिक केंद्र और सेना में भर्ती के इच्छुक युवाओं की मदद जैसे मानवीय एवं जनसेवी कार्यों के माध्यम से भारतीय सशस्त्र सेनाएं उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे पूर्वोत्तर के लोगों को मुख्य धारा में ला रही हैं।

भारतीय सेना अपनी मानवीय भूमिका को स्पष्ट करने के उद्देश्य से 14 से 27 नवंबर के बीच नयी दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले के रक्षा पवैलियन में अपनी प्रस्तुति करेगी। रक्षा पवैलियन के इस विशेष पक्ष को ‘डिफेंडरर्स आफ द डान’ नाम दिया गया है और इसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र की विविध और बहुरंगी संस्कृति की झलक दिखायी देगी।

इससे प्रधानमंत्री की 'पूर्वोत्तर की ओर देखो' को भी हकीकत के करीब लाने में मदद मिलेगी। पिछले छह दशकों से अशांति के दौर से गुजर रही भारतीय जनता को अब पूर्वोत्तर क्षेत्र में सेना के गंभीर प्रयासों से शांति की एक नयी किरण दिख रही है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा ये आठ राज्य हैं। इनमें से अधिकांश पिछले कई दशकों से आतंकवाद की समस्या से जूझ रहे हैं। लेकिन भारतीय सेना अपने नियमित कर्तव्यों के इतर पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों के लिये बुनियादी ढांचे के विकास के साथ ही कई जन सेवी कार्यक्रम चला रही है।

भारतीय सेना ने पूर्वोत्तर क्षेत्र की जनता का दिल जीतने के लिये आपरेशन सहयोग, आपरेशन समारितन, सद्भभावना जैसे कार्यक्रम शुरू किये ताकि इन राज्यों में विकास कार्य पटरी पर आ सके।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में बहुतायत सड़कों एवं पुलों का निर्माण एवं रखरखाव का काम सशस्त्र सेनाएं कर रही हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और इन राज्यों के बीच संपर्क के विकास से इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को तेजी से विकसित होने में मदद मिली है क्योंकि ये राज्य भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच पुल का काम करते हैं। यह पर्यटन एवं व्यापार का बहुत बड़ा केंद्र है। इससे लोगों के आपसी संपर्क बेहतर हुआ है।

इस रक्षा पवैलियन से संबंधित किसी भी जानकारी के लिये आप श्री वी.के. अरोरा से 9811153833 नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।

Sunday, October 21, 2007

सैकडों रावण सज-धज कर तैयार हैं दहन के लिए

राजधानी दिल्ली विजयादशमी के रंग में डूब चुकी है। दिल्ली में दशहरा को लेकर बच्चे, बुजुर्ग, महिलाओं सभी में उत्साह देखते ही बन रहा है। लोगों को रावण, मेघनाद एवं कुंभकर्ण के धू धू कर जलते पुतलों को देखने का बेसब्री से इंतजार है।

दिल्ली में दशहरा पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। कई जगहों पर रामलीला का मंचन किया जा रहा है। २१ अक्टूबर को विजयादशमी के दिन दिल्ली में रावण, मेघनाद एवं कुंभकर्ण के सैकडों विशालकाय पुतलों क जलाए जाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। कई रामलीला समितियां दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में रामलीलाओं का मंचन कर रही हैं, जिनमें लोग बढ-चढ कर भाग ले रहे हैं।

दशहरा के दौरान बनने वाले इन तीनों पुतलों पर कम से कम १२ हजार रुपये खर्च जबकि अधिकतम सीमा तय नहीं है। राजधानी में विभिन्न जगहों पर सैकडों पुतले खडे किए गए हैं। पुतला बनाने के कारोबार से जुडे एक कारीगर के अनुसार पुतलों की कीमत इनके आकार के हिसाब से रखी गयी है। पिछली बार की तुलना में इस बार पुतला बनाने पर अधिक खर्च आ रहा है। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार बांस, कागज आदि की कीमतें तेजी से बढी हैं। पुतला बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला कागज १० रुपये किलो से बढकर १६ रुपये किलो हो गया है।

यह त्यौहार सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी माना जाता है। रामलीला के मंचन से लेकर लंकापति रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बनाने के कार्य में हिन्दू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम भी बढ-चढ कर भाग लेते हैं। कुछ मुस्लिम कारीगर तो दशकों से पुतला बनाने के कारोबार में लगे हुए हैं। गौरतलब है कि भारत में विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि दशहरा के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।

गौरतलब है कि राजधानी में आजाद मंडी, रमेश नगर, टैगोर गार्डन, करावल नगर, नांगलोई आदि में पुतला बनाने का व्यापक कारोबार होता रहा है। पुतला बनाने का कारोबार सैकडों कारीगरों एवं मजदूरों की जीविका का जरिया रहा है। ये लोग दशहरा से कई दिन पहले से ही पुतले बनाने के काम में जुट जाते हैं। यहां बनने वाले पुतलों की मांग तेजी से बढ रही है। दिल्ली में इस कारोबार की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आस-पास के राज्यों ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी यहां पुतले बनवाने के ऑर्डर दिए जाते रहे हैं।

दशहरा के दिन पुतला दहन देखने के लिए सडकों पर लोगों की भारी भीड जुटती है। इस दौरान पुलिस को यातायात जाम से निपटने के लिए भारी मशक्कत करनी पडती है। इस अवसर पर पुतलों को गौर से देखने के लिए लोग इमारतों की छतों, दीवारों, वाहनों की छतों आदि पर भी खडे होने से परहेज नहीं करते हैं।

Sunday, October 7, 2007

कहीं भी मूतने वालो अब हो जाओ सावधान !

'यहां पेशाब करना मना है', 'देखो गधा मूत रहा है' या 'यहां मत मूत गधे के पूत' जैसे वाक्य आपको विभिन्न दीवारों पर लिखे नजर आ सकते हैं. लेकिन दीवारों को गंदा होने से बचाने के लिये ये वाक्य कितने कारगर एवं प्रभावी साबित होते हैं? इस सब के बावजूद अधिकांश लोग साफ-सुथरी दीवारों आदि पर पेशाब करने या पान खाकर थूकने से परहेज नहीं करते. ऐसे लोगों से निपटने के लिये कुछ संगठनों एवं भवन मालिकों ने अपनी बाहरी दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.

राजधानी दिल्ली में दीवारों को पेशाब एवं थूक से बचाने के लिये ऐसी दीवारों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें लगी देखी जा रही हैं. मेहरौली-बदरपुर रोड पर स्थित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) कार्यालय की दर्जनों मीटर लंबी बाउंडरी को पान खाकर थूकने वालों एवं पेशाब करने वालों से बचाने के लिये इस पर कई देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाई गई हैं और यह प्रयोग काफी हद तक सफल भी हो रहा है. ITBP कार्यालय की विशाल बाउंडरी बिल्कुल साफ-सुथरी दिखती है. लोगों में यह धारणा व्याप्त है कि देवी-देवताओं की तस्वीरों, मूर्तियों, पीपल के पेड आदि के पास पेशाब करने या थूकने से उनका अहित हो सकता है और इसी भय से लोग इन स्थलों को गंदा करने से परहेज करते हैं.

गौरतलब है कि यह प्रयोग दिल्ली में कई जगह अपनाया जाने लगा है. दीवारों को गंदा होने से बचाने के लिये कई भवन मालिकों ने इन पर देवी-देवताओं की तस्वीरों वाली टाइल्स लगवाई हैं. जाहिर है यह उपाय अनोखा जरूर लग सकता है लेकिन इससे दीवारों को पेशाब एवं थूक से बचाने में काफी मदद मिल रही है.

Saturday, September 29, 2007

दुनिया को जीत लेने का जज्बा रखने वाला शख्स जिंदा लाश बन गया है

यह कहानी एक ऐसे बिहारी धावक की है जो पिछले १२ वर्षों विकलांगता से जूझ रहा है। यह शख्स पेशे से वकील है और आज शारीरिक विकलांगता के कारण दो डग चलने में भी असमर्थ है। इस शख्स का नाम है देवेन्द्र प्रसाद।

जब देवेन्द्र प्रसाद १९७९ में पूरे बिहार में ८०० मीटर की दौड में अव्वल आए थे, तो उनमें पूरी दुनिया को जीत लेने का जज्बा था। इसी दौड ने पेशे से वकील इस शख्स को एक ऐसी बीमारी का मरीज बना दिया जिसके कारण वे पिछले १२ वर्षों से बैठने में पूरी तरह असमर्थ हैं। वे अपनी दिनचर्या या तो लेट कर या खडे होकर निपटाते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय तक की कागजी कवायद के बावजूद उन्हें कहीं से मदद नहीं मिली।

पटना के कदमकुआं इलाके स्थित पीरमोहानी के रहने वाले देवेन्द्र प्रसाद आज खाना-पीना, शौच, यात्रा, सब कुछ लेट कर या खडे होकर निपटाने के लिए अभिशप्त हैं। उनका कूल्हा इस कदर जाम हो गया है कि वे बिल्कुल नहीं बैठ सकते। वे मायूस स्वर में कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे मेरी रग रग में ताले जड दिए गए हैं। मैं पिछले १२ वर्षों से बैठा नहीं हूं।

जो व्यक्ति कभी मैदान पर सरपट दौडा करता था, वह आज दो डग चलने के लिए भी खुद को घसीटता है। सिविल कोर्ट पटना में वकील देवेन्द्र प्रसाद को कोर्ट जाने के लिए भी रिक्शे की सवारी लेट कर या खडे होकर करनी पडती है। एन्कलोजिंग स्पोंडीलाइटिस बीमारी की चपेट में आने की उनकी कहानी वहीं से शुरू होती है जब वे सफल धावक हुआ करते थे। १९७९ में प्रांतीय दौड प्रतियोगिता में वे अव्वल तो आए, लेकिन उसी वक्त उनके पांव के अंगूठे में चोट लग गयी।

१९८०-८१ में कमर में मामूली दर्द शुरू हुआ। १९९३ तक उनका कूल्हा इस परेशानी की चपेट में आ गया। १९९७ में एम्स में उन्हें एनक्लोजिंग स्पोंडीलाइटिस का मरीज बताया। एम्स के डॉ. एस. रस्तोगी ने इसका निदान ऑपरेशन बताया। देवेन्द्र प्रसाद ने आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री राहत कोष से मदद लेनी चाही। एम्स ने कूल्हा पूरी तरह बदलने का खर्च १.२६ लाख रुपये बताया। प्रधानमंत्री कार्यालय के सेक्शन ऑफीसर पी. जी. जार्ज ने प्रसाद को पत्र (पत्र संख्या ८२ (६८७)/९८-पीएमएफ) के जरिए पूरा दस्तावेज सौंपने को कहा। प्रसाद ने ऑपरेशन की तारीख, आय प्रमाण पत्र आदि का ब्यौरा ३-३-९८ को पीएमओ को भेजा। दिल्ली की आहूजा सर्जीकल्स कंपनी ने हिप रीप्लेसमेंट के खर्च का ब्यौरा दिया।

एम्स की ओर से रस्तोगी और स्वास्थ्य मंत्रालय के तत्कालीन अवर सचिव चरणजीत सिंह को यह सूचित किया गया कि मरीज को ऑपरेशन के लिए १५ जुलाई, १९९८ को भर्ती किया जाएगा, इसलिए प्रधानमंत्री सहायता कोष से एम्स निदेशक के नाम १.२६ लाख रुपये का चेक भेज दिया जाए। यह मदद प्रसाद को कभी नहीं मिली। इसी बीच एक बार फिर उनके साथ क्रूर मजाक हुआ और उनका पैर टूट गया। आज उनकी पत्नी बमुश्किल सिलाई कर २०००-३००० रुपये कमा लेती हैं। समय पर फीस नहीं चुकाने के कारण उनकी सतानों को कई बार स्कूल से बाहर किया जा चुका है।

४५ वर्षीय देवेन्द्र प्रसाद का कहना है कि मैं अपनी जिंदगी की लाश ढो रहा हूं। खुद किसी का खयाल आता है, लेकिन इस पडाव पर परिवार को छोड कर कैसे चला जाऊं? उनका पता है - देवेन्द्र प्रसाद, तीसरी गली, पीरमोहानी, पो.ओ. - कदमकुआ, जिला-पटना (बिहार)।

Friday, September 28, 2007

महात्मा गांधी पर लिखी नयी पुस्तक तैयार



२ अक्टूबर को महात्मा गांधी का १३८वां जन्मदिवस है और इस अवसर पर गांधीजी पर लिखी नयी पुस्तक विमोचन के लिए तैयार है। इस पुस्तक का नाम है - 'महात्मा गांधी :इमेजेज आइडियाज फॉर नन-वॉयलेंस'। लंदन में बीबीसी के पूर्व पत्रकार विजय राणा ने इस पुस्तक को संपादित किया है। भारतीय मूल के राणा NRIfm.com के संपादक हैं।

२ अक्टूबर यानी गांधी जयंती के अवसर पर इस किताब का विमोचन किया जाएगा। इस किताब में महात्मा गांधी से जुडें तमाम चित्रों को भी शामिल किया गया है। गौरतलब है कि महात्मा गांधी के आदर्शों को लेकर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में चर्चा होती रही है। भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों में गांधीजी के अनुयायी बडी तादाद में मौजूद हैं. लोग उनके आदर्शों का पालन कर रहे हैं। इस किताब का लोकार्पण भारतीय उच्चायोग के इंडिया हाउस में होगा। इस किताब में गांधीजी के कई चित्रों, भित्तिचित्रों, पेंटिंगों आदि को शामिल किया गया हैं। इन चित्रों का महत्व यह है कि ये चित्र अपने आप में गांधीजी के आदर्शों को बयां करते हैं। ये चित्र अहिंसा, शांति, धार्मिक सौहार्द्, सामाजिक एकता, ग्रामीण विकास, आर्थिक उदारीकरण जैसे तमाम मुद्दों को बयां करते नजर आएंगे।

इस किताब में इस बात की भी व्याख्या की गयी है कि गांधी की पूजा पूरे विश्व में किस प्रकार होती है। दरअसल, गांधी की पूजा गांधी के विचारों के साथ होती है। इस किताब में शामिल चित्रों से यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार गांधी न केवल भारत में प्रेरणा के स्रोत हैं बल्कि वे विश्व के तमाम देशों में इसी प्रकार प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

इस किताब में गांधी के साथ साथ नेल्सन मंडेला के भी चित्र हैं। गौरतलब है कि मंडेला ने भी गांधी के आदर्शों को मान कर संघर्ष किया था। इस किताब में आयरलैंड की ब्लैक वैली के भी कुछ चित्र शामिल हैं। दरअसल, वहां एक स्मारक पर गांधीजी के कुछ शब्द लिखे हुए हैं। यह स्मारक ग्रेट आयरिश में आए अकाल में भूख से मारे गए लाखों लोगों की याद में स्थापित किया गया था। इसी प्रकार अलग अलग जगहों पर गांधी जी के आदर्शों वाले पत्थरों या पोस्टरों को चित्र के द्वारा यहां रखा गया है। विजय राणा को इस किताब को तैयार करने में तीन साल लग गए। राणा ने विश्व के अलग अलग हिस्सों से चित्र और अन्य सामग्री इकट्ठी की हैं।

Monday, September 24, 2007

टीम इंडिया ने रचा इतिहास

टीम इंडिया ने ट्‍वेंटी-20 विश्व कप जीत लिया। फाइनल मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को 5 रनों से हरा दिया। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 5 विकेट पर 157 रन बनाए। जवाब में पाकिस्तान की टीम 19.3 ओवरों में 152 रनों पर सिमट गई।

इरफान पठान को मैन ऑफ द मैच एवं शाहिद अफरीदी को मैन ऑफ द सीरीज चुना गया. पठान ने 4 ओवरों में 16 रन देकर 3 विकेट लिए। वहीं कई अन्य खिलाडियों ने भी अच्छे शानदार खेल का परिचय दिया. गौतम गंभीर ने 54 गेंदों पर शानदार 75 रन तथा रोहित शर्मा ने १६ गेंदों पर ३० रन बनाए. हालांकि युवराज सिंह फाइनल मुकाबले मे चौकों एवं छक्कों की बारिश करने में असफल रहे. युवराज ने 19 गेंदों पर केवल 14 रन ही बनाए।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई नेताओं एवं जानी मानी हस्तियों ने शानदार जीत के लिए टीम इंडिया को बधाई दी है. टीम इंडिया को बधाई देने एवं टीम की हौसलाअफजाई करने वालों में बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान भी शामिल थे. उन्होंने खिलाडियों से गले मिलकर उन्हे बधाई दी. इस अवसर पर उत्साहित हरभजन सिंह ने उन्हें गोद में उठा लिया. शाहरुख अपने बेटे के साथ स्टेडियम में इस रोमांचक मुकाबले के दौरान तालियां बजाते नजर आए तथा बाद में उन्होंने एक टीवी चैनल से बातचीत में खिलाडियों की जमकर तारीफ की.

Saturday, September 22, 2007

पंजाबियों दा शौक

यूं तो ८.५ लाख रुपये में दिल्ली जैसे शहर में एक छोटा आशियाना खरीदा जा सकता है, लेकिन पंजाब में ऐसे दर्जनों संपन्न लोग हैं जिनके लिये यह रकम कोई मायने नहीं रखती। वे इतनी बडी रकम मोबाइल फोन का नंबर खरीदने में खर्च करने से परहेज नहीं करते हैं। पंजाब में ऐसे कम से कम 100 लोग हैं जिन्होंने इस तरह के अनूठे नंबर हासिल करने के लिए 1 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक खर्च किए हैं।

इनमें से कुछ वीआईपी मोबाइल नंबर हैं :

9780000000 : 15 लाख रुपये
9864000005 : 9 लाख रुपये
9864000018 : 8.5 लाख रुपये
9864000001 : 7.5 लाख रुपये
9864100000 : 3.50 लाख रुपये


इन दिनों पंजाब में अनूठे मोबाइल नंबर हासिल करने का कुछ धनाढय लोगों पर जुनून छाया हुआ है। इन नंबरॉ के लिये लगने वाली बोली में ये संपन्न पंजाबी बढ-चढ कर भाग लेते हैं। अगर लुधियाना का एक व्यापारी 15.5 लाख रुपये का अनूठा मोबाइल फोन नंबर के लिए चर्चा के केंद्र में है तो यहां ऐसे कम से कम 100 लोग हैं जिन्होंने इस तरह के अनूठे नंबर हासिल करने के लिए 1 लाख रुपये से 10 लाख रुपये खर्च किए हैं।

संपन्नता के लिए जाने जाने वाले पंजाबियों पर स्वप्निल और वीआईपी नंबर हासिल करने का जैसे जुनून छाया हुआ है। दिखावटीपन की इस होड़ में वे मोबाइल कंपनियों की मुस्कराहट बढ़ा रहे हैं। मोबाइल कंपनियां इसका बढ़-चढ़कर फायदा उठा रही हैं। सरकारी कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) भी इस माहौल का भरपूर फायदा उठा रही है और उसने इस सप्ताह अनूठे नंबरों के दीवानों को वीआईपी नंबर थमा कर करीब एक करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई की है। वीआईपी फोन नंबर 9864000005 हासिल करने के लिए एक व्यक्ति ने 9 लाख रुपया खर्च किया है वहीं मोबाइल नंबर 9864000018 और 9864000001 क्रमश: 8.5 लाख और 7.5 लाख रुपये में बिके हैं।

बीएसएनएल के एक अधिकारी का कहना है कि हमने इन वीआईपी नंबरों के लिए पंजाब के लोगों की बढ़ती ललक को ध्यान में रखकर ऐसे अनूठे नंबर गढ़े हैं। उन्होंने कहा कि पहले इस तरह के वीआईपी और अनूठे नंबर मंत्रियों, नेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों, उद्योगपतियों और विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों को दिए जाते थे, लेकिन अब इस होड़ में सामान्य संपन्न लोग भी शामिल हो गए हैं। अधिकारी ने कहा कि पहले इस तरह के नंबर मुफ्त दिए जाते थे, लेकिन अब जब ऐसे नंबरों के लिए जबर्दस्त होड़ शुरू हो गयी है तो हमने मार्केटिंग की अपनी नीति बदल ली है।

लुधियाना के व्यापारी अमित मल्होत्रा ने जुलाई में हच कंपनी से 15 लाख रुपये में 9780000000 नंबर खरीदा था। उन्होंने ऑनलाइन नीलामी के जरिए यह नंबर खरीदा था। मल्होत्रा कहते हैं कि इस नंबर से मैं बेहद खुश हूं। यह नंबर खरीदने के लिए मैंने अपने दोस्तों और संबंधियों से पैसा भी उधार लिया। इस सप्ताह बीएसएनएल सीरीज का 9864100000 नंबर 3.50 लाख रुपये में बिका। गौरतलब है कि पंजाब के लोग वीआईपी कार नंबरों को खरीदने पर भी भारी-भरकम रकम खर्च करते हैं।

Tuesday, September 18, 2007

कंप्यूटर के क्षेत्र में एक नया प्रयोग - 2

विया टेक्नोलाजीज ने छोटे आकार के पर्सनल कम्प्यूटर, डिजीटल मनोरंजन और नेटवर्क के उत्पादों में विंडो विस्ता से चलने वाला विया इपीआईए एसएन मदरबोर्ड लांच किया है। इसकी एक खास विशेषता यह है कि इसमें कम बिजली की खपत होती है एवं यह आवाज भी कम करता है।

इस नये आधुनिक 1.8 गिगार्हज स्पीड वाले सी 7 प्रोसेसर नेटवर्क, डिजीटल साईनबोर्ड और अन्य तकनीक उत्पादों को लेकर प्रसिद्ध है। कंपनी माइक्रोस्फोट के विस्ता साफ्टवेयर के उपयुक्त है। हर कंप्यूटर में कूलिंग पंखे लगे होते है। कंप्यूटर के आधुनिकरण से उन्हें ठंडा करने में आसानी होती है।

कंपनी के उपाध्यक्ष डेनियल वू के अनुसार विश्व भर में कंप्यूटरों के आकार कम हो रहे हैं। हमारे इस उत्पाद से लोगों को काफी आसानी होगी। इसमें पंखे नहीं होने के कारण बिजली की भी बचत होगी तथा ध्वनि भी कम होगी।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें :

VIA Technologies, Inc
New Delhi
V.K.Arora Ph 09811153833

Friday, September 14, 2007

उडिया साहित्य के जनक को भुला दिया गया है


उन्हें उस आंदोलन का सूत्रपात करने का श्रेय जाता है जिसने भाषायी आधार पर देश में पहली बार किसी राज्य के गठन का रास्ता साफ किया। आधुनिक उडिया साहित्य के जनक कहे जाने वाले इस शख्स की विरासत आज उपेक्षा की मार झेल रही है। आधुनिक उडिया साहित्य के जनक और भाषायी आधार पर देश में प्रथम राज्य के गठन की राह बनाने वाले फकीर मोहन सेनापति का पुश्तैनी घर और बगीचा उपेक्षा की मार झेल रहा है।

शोधकर्ताओं और साहित्य प्रेमियों का मानना है कि फकीर मोहन सेनापति की विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने की गंभीर कोशिश नहीं हो रही है। आधुनिक उडिया समाज में फकीर मोहन को व्यासकवि के नाम से भी जाना जाता है। १८४३ में जन्मे व्यासकवि ने १९१८ में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। जब फकीर मोहन डेढ वर्ष के थे, उनके पिता का निधन हो गया था। फकीर मोहन ने 'मो मातृभाषा मोते श्रेष्ठ' (मेरी मातृभाषा मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ है) का उद्घघोष किया था। उनके इसी इजहार से देश में भाषा के नाम पर पहली बार किसी राज्य के गठन का रास्ता साफ हुआ। १९३६ में उडीसा का भाषायी आधार पर गठन हुआ। व्यासकवि को उडिया पुनर्जागरण का सूत्रपात करने वाले लोगों में से एक माना जाता है।

जिस व्यासकवि ने अपने साहित्यिक अवदान से अपने समाज की इतनी सेवा की, आज उनकी विरासत खतरे में है। राजधानी भुवनेश्वर से २०० किलोमीटर दूर बालासोर जिले के मलिकाशपुर गांव में उनके घर की जिस कदर उपेक्षा हो रही है, वह बेहद दुखद है। उन्होंने लोगों में आत्मसम्मान की भावना फैलाने में कोई कसर नहीं छोडी थी, लेकिन आज उनकी विरासत खतरे में है। उनके जीर्ण-शीर्ण घर को जिस तरीके से पुस्तकालय, म्यूजियम के रूप में तब्दील किया गया है, वह हास्यास्पद है। वर्षों तक उनका यह घर उपेक्षा की मार झेलता रहा और जब उसकी मरम्मत की गयी और उसकी शक्ल बदली गयी तो मौलिकता ही गायब हो गयी। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि यह परिसर उनकी याद में समर्पित नहीं है। इसकी मूल पहचान खत्म हो गयी है और इसमें कुछ देवताओं की प्रतिमाएं लगा दी गयी हैं। कहीं से भी देखने से नहीं लगता कि यह व्यासकवि का घर है।

व्यासकवि फकीर मोहन सेनापति आधुनिक उड़िया कथा-साहित्य के जनक माने जाते हैं। उनकी कहानी तत्कालीन साहित्यिक पत्रिका ‘बोधदायनी’ में छपी थी। दुर्भाग्यवश वह पत्रिका और ‘लछमनिया’ कहानी भी आज इतिहास के गर्भ में समा गयी हैं।

लोगों का कहना है कि इस घर की जिस हास्यास्पद तरीके से मरम्मत की गयी है, वह अपने आपमें एक मिसाल है कि कैसे देश का सांस्कृतिक विभाग काम कर रहा है। घर के कई स्थानों से पानी का रिसाव दूर से ही देखा जा सकता है। यही हाल उनके गार्डन का है। यहां कई जगह सुंदर नक्काशी की गई थी जो आज गायब हो चुकी है। इस गार्डन की देखभाल के लिए एक माली नियुक्त किया गया था, लेकिन फिलहाल इसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। इससे यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है कि राज्य प्रशासन इस साहित्य हस्ती की विरासत के संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं है।

Wednesday, September 12, 2007

कंप्यूटर के क्षेत्र में एक नया प्रयोग...........

पर्सनल कंप्यूटर निर्माता OQO " UPMC मॉडल 02 " बाजार में उतारेगी

पर्सनल कंप्यूटर का उपयोग करने वाले के लिए यह एक खुशखबरी की तरह है। मात्र 450 ग्राम वजन वाला पर्सनल कंप्यूटर अब बाजार में आने वाला है। यह सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होगा। यह 1.4 AMBPS की गति से काम करेगा।

इसमें आप 120 जीबी तक बढ़ा कर अपना काम आगे बढ़ा सकते हैं। यह इसकी सबसे बड़ी खूबी होगी। दरअसल क्षमताओं को आगे बढ़ाना पर्सनल कंप्यूटर का सबसे बड़ा काम होता है।

मॉडल 02 का नया रूप मोबाईल पेशेववरों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। खासकर इंटरनेट और अन्य सुविधाओं को लेकर उत्सुक लोगों के लिए कंपनी यह सबसे रोचक काम करने जा रही है।

VIA का यह अवार्ड विजेता संस्करण लोगों को बेहद पसंद आएगा। कंपनी के उपाध्यक्ष (कॉरपोरेट मार्केटिंग) रिचर्ड ब्राउन ने बताया कि हमें इस बात की खुशी है कि अब इस प्रकार के कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होने कहा कि इस प्रकार के मॉडल काफी लोकप्रिय साबित होंगे।

OQO के विपणन और गठबंधन के वरिष्ट उपाध्यक्ष बॉब रॉसिन कहते हैं कि यह मोबाइल पेशेववरों के लिए यह मॉडल उपयोगी साबित होगा। इसमें एक साथ कई खूबियां हैं।

जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं-

http://www.ultramobilelife.com/index.php?option=com_content&task=view&id=496

Technologies, Inc
Contact V।K.Arora : 9811153833

Monday, September 10, 2007

हे सडक देवता हमारी रक्षा करना!

अगर मंगलवार के दिन आप आगरा की सडकों पर घूमने निकलें तो महिलाओं को सडक पर पूजा करते देख आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दरअसल, ताज नगरी आगरा में सडकों की पूजा की प्रवृत्ति इन दिनों जोर पकड रही है। लोग यात्रा पर निकलने से पहले सडक हादसे से बचने के लिए कुमकुम, पेडा, चंदन, फूल आदि से सडक की पूजा करते हैं।

सडक पर जुटने वाली महिलाएं सडक देवता से अपने संबंधियों की प्राण रक्षा की प्रार्थना करती हैं। ये महिलाएं अपने संबंधियों सडक हादसे से बचने के लिए सडक की पूजा करती हैं। उन्हें विश्वास है कि इससे सडकों पर उनके परिजनों व उनकी रक्षा होगी। खासकर कुछ हालिया सडक हादसों के बाद यहां सडक की पूजा की प्रवृत्ति अधिक जोर पकडने लगी है। ग्वालियर रोड के नजदीक रहने वाली सरोज का कहना है कि हर रोज मंगलवार की सुबह उनकी जैसी कुछ महिलाएं इस हाईवे पर आती हैं और सडक को धोकर वहां फूल, चंदन आदि से पूजा करती हैं। सडक की एक छोटी पट्टी को पवित्र जल से धोने के बाद वहां स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है और सडक देवता को कुमकुम, पेडा, चंदन, फूल आदि से पूजा जाता है। यहां जुटने वाली महिलाएं सडक देवता से अपने संबंधियों की प्राण की रक्षा की प्रार्थना करती हैं।

ऐसा नहीं है कि ग्वालियर रोड पर ही ऐसा नजारा देखा जाता है। शहर के नहराइच, रतनपुरा और यहां तक कि कमला नगर जैसी पॉश कॉलोनियों में भी महिलाओं को सडक की पूजा करते देखा जाता है। यहां तक कि हाईवे के किनारे स्थित गांव के लोग भी सडक पूजा में आस्था रखने लगे हैं। यहां के हिन्दू पुजारियों का कहना है कि अगर यातायात पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए पुख्ता कदम नहीं उठा सकती है तो हम भगवान से प्रार्थना क्यों न करें। पुलिस के मुताबिक ताजमहल की नगरी आगरा में रोजाना कम से कम एक सडक हादसा जरूर होता है जिनमें से ५० फीसदी हादसे भुक्तभोगी के लिए जानलेवा साबित होते हैं। १९८५ में जहां आगरा में महज ४० हजार वाहन हुआ करते थे, आज उनकी संख्या बढकर ४ लाख हो गयी है। एक गृहिणी पुष्पा झा को हर मंगलवार को सडक की पूजा करते देखा जा सकता है। उसका कहना है कि अगर ऐसा करने से मेरे पति की रक्षा होती है तो मैं ऐसा क्यों न करूं?

लोग यात्रा पर निकलते समय कई अन्य तरह के टोटके भी करते हैं। यदि कोई व्यक्ति यात्रा पर निकल रहा हो और बिल्ली रास्ता काट जाए या खाली बाल्टी या बरतन दिख जाए तो वह कुछ देर के लिए वापस आ जाता है। घर में उसे कुछ पानी पीने को दिया जाता है तथा माथे पर राख का टीका लगवा कर पुन: यात्रा पर निकलता है।

Friday, September 7, 2007

प्रेमी संग रोमांस कर वापस लौटी 'सावित्री'


पिछले सप्ताह अपनी प्रेमी के संग भागी 'सावित्री' आखिरकार अपने पर लौट आई है। सावित्री उस हथिनी का नाम है जो कुछ दिन पहले एक पश्चिम बंगाल के ओलम्पिक सर्कस के परिसर से निकल कर झारखंड के एक हाथी के साथ भाग गयी थी।

रायगंज के कुमारबाजार में ओलम्पिक सर्कस के टेंट से अपने प्रेमी हाथी के साथ फरार होने वाली २६ वर्षीया हथिनी सावित्री जंगल में रोमांस के बाद अब वापस लौट आई है। २९ अगस्त की रात्रि को यह प्रेम दीवानी हथिनी झारखंड के एक हाथी के साथ भाग गयी थी। एक सप्ताह तक हाथी के साथ मौज-मस्ती के बाद यह हथिनी वापस लौट आई है। सर्कस के कर्मचारियों ने इस हथिनी के वापस लौटने की उम्मीद छोड दी थी, लेकिन इस हथिनी ने वापस लौट कर अपनी वफादारी का परिचय दिया।

सर्कस के कर्मचारियों की खुशी का उस वक्त ठिकाना न रहा जब सावित्री को उन्होंने बुधवार की शाम अपने प्रेमी के साथ देखा। पिछले कुछ दिनों से वन विभाग की एक टीम इस प्रेमी जोडे पर नजर रख रही थी। जब इस टीम ने इस जोडे को देख कर शोर मचाया तो हथिनी का प्रेमी वहां से फरार हो गया। बांकुरा के एक संभागीय वन अधिकारी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हमने बांकुरा के जंगल में एक तालाब के पास इस हथिनी को देखा था। हमारे कर्मचारियों ने हथिनी को चारों ओर से घेर लिया था। उसके प्रेमी को उसके समीप नहीं फटकने देने के लिए ढोल और शंख भी बजाए गए थे।

सावित्री के सामने उसके महावत कलीमुद्दीन शेख को लाया गया। सावित्री ने कलीमुद्दीन को पहचान लिया। इस महावत ने कहा कि मुझे मालूम था कि सावित्री अपने साथी से ऊब जाएगी और जल्द वापस हमारे पास लौट आएगी। उन्होंने कहा कि सावित्री कभी जंगल में रहने की आदी नहीं थी। वह कुछ ही दिनों में कमजोर हो गयी है। महावत के मुताबिक साबित्री सर्कस लौट कर खुश है क्योंकि पिछले २० वर्षों से वह इस सर्कस का हिस्सा रही है। सर्कस के कर्मचारी अपनी खुशी छिपा नहीं पा रहे हैं। कर्मचारियों ने कहा कि सावित्री इस सर्कस की बेटी की तरह है और मुझे उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में साबित्री दर्शकों की भीड खींचने लगेगी। वह मेरे सर्कस की स्टार रही है। वैसे, अब इस रोमांटिक हथिनी को पहले जितनी आजादी नहीं मिलेगी और उस पर कडी निगरानी रखी जाएगी। दूसरी हथिनियों पर निगरानी भी बढा दी गयी है।

Tuesday, September 4, 2007

जहां आसान नहीं है कब्रिस्तान में जगह पाना


जहां लोग रहने के लिए एक आशियाने की व्यवस्था करने में लंबे अरसे तक भाग-दौड करते रहते हैं वही उनकी मौत के बाद उनके दफन के लिए जमीन का छोटा टुकडा भी बडी मुश्किल से नसीब हो पाता है। यह हाल है रूस में कब्रिस्तानों का। रूसी शहरों में मुर्दों के लिए जमीन ढूंढना जिंदा इंसान के लिए घर की व्यवस्था करने से कहीं अधिक महंगा हो गया है। यहां तक कि दूरदराज के कब्रिस्तानों में मॉस्को वासियों को अपने परिजनों को दफनाने पर अमूमन ६ लाख रूबल यानी २३,४०० डॉलर खर्च करना पडता है जो एक औसत मॉस्कोवासी की पूरी साल की कमाई के बराबर है।

आम लोगों की बात तो दूर, जब इस साल बसंत ऋतु के दौरान मॉस्को के एक कब्रिस्तान में पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और संगीतकार मिस्टिस्लाव रोस्ट्रोपोविच के पार्थिव अवशेषों को दफन करने की बारी आई तो इन दोनों महान हस्तियों को भी यहां जमीन मयस्सर नहीं हुई। मॉस्को में कब्रिस्तानों में जमीन की भारी किल्लत से परेशान होकर कई लोग अपने परिजनों के शवों को दफन के बजाय अब जलाने लगे हैं। मीडिया की खबरों के अनुसार कई कब्रिस्तानों में दफन की रस्म में १००,००० से ४००,००० रूबल के बीच खर्च होता है जिसमें दिनोंदिन भारी बढोत्तरी हो रही है।

रूस के प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि नोवोदेविची या क्रेमलिन के पास स्थित कब्रिस्तानों में महान हस्तियों के पार्थिव शरीर को भी दफनाने के लिए जमीन ढूंढना आसान काम नहीं है। आम लोगों की बात ही अलग है। दूसरे प्रमुख रूसी शहरों में कब्रिस्तानों में अपने परिजनों के लिए एक टुकडा जमीन ढूंढना लोगों के लिए टेढी खीर बनता जा रहा है। यही वजह है कि इन शहरों में मुर्दों को दफनाना इतना अधिक महंगा हो ग्या है।

कब्रिस्तानों पर बढते दबाव को देखते हुए मॉस्को नगर प्रशासन ने लोगों को लाशों की अंत्येष्टि के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया है। अखबारों में इन दिनों बडे बडे विज्ञापन छपते हैं और लोगों को लाशों को चिता के हवाले कर अस्थि कलश को जमीन में दफन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। वही दूसरी ओर इससे चर्च को ईसाइयत पर खतरा मंडराने का भी डर सताने लगा है। रसियन ऑर्थोडक्स चर्च ने मृतक ईसाइयों की अस्थियां कलश में रख कर दफन किए जाने के नए चलन को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। ऑर्थोडक्स चर्च ने इसे ईसाई-विरोधी रस्म करार दिया है।

एक आकलन के मुताबिक रूस में लाशों को जलाने का चलन अब जोर पकडने लगा है। यूरोपीय संघ के देश जर्मनी में तो करीब ५० फीसदी शवों को जलाया जाने लगा है। दफन रस्म विभाग के प्रमुख अधिकारी कहते हैं कि मॉस्को में किसी मुर्दे को मात्र आठ वर्ष या इससे कुछ अधिक समय तक के लिए ही कब्र नसीब हो सकती है। करीब ७० कब्रिस्तान तो मुर्दो से पहले ही भर चुके हैं। इनमें एक भी शव दफनाने के लिए जगह नहीं बची है। मॉस्को में ४ शवदाह केंद्र बन चुके हैं। इनकी संख्या बढाए जाने की योजना है।

Friday, August 31, 2007

हमारे नेताओं को भी अच्छी लग रही है 'चक दे इंडिया'


'चक दे इंडिया' जैसी लाजवाब फिल्म के निर्माता आदित्य चोपड़ा, निर्देशक शिमित अमीन, अभिनेता शाहरुख खान और इसके लेखक जयदीप साहनी को बधाई दी जानी चाहिए कि इन्होंने मिलकर हॉकी जैसे खेल पर इतनी बढिया फिल्म बनाई है. यह फिल्म आम दर्शकों के अलावा नेताओं एवं मन्त्रियों को भी बेहद पसंद आ रही है.

एक मंत्री महोदय अभिनेता शाहरुख खान की भूमिका वाली फिल्म ‘चक दे इंडिया’ की सफलता से इतने अधिक प्रभावित हैं कि वे प्रधानमंत्री को भी यह फिल्म देखने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री भी वक्त निकाल कर यह फिल्म देखेंगे। ये मंत्री महोदय हैं पीमओ में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान. उन्होने जब से यह फिल्म देखी है वे अभिभूत हैं। इस फिल्म के बारे में उनक कहना है कि यह फिल्म प्रेरणादायक है हॉकी खेल में जान फूंकने की क्षमता रखती है.


गौरतलब है कि जब यह फिल्म बनाने की योजना बनायी जा रही थी तब पृथ्वीराज चौहान खेल मंत्रालय के मुखिया हुआ करते थे. चौहान इस फिल्म की योजना से इतने अधिक प्रभावित थे कि फिल्म की शूटिंग के दौरान ही अपने कई दोस्तों के साथ नेशनल स्टेडियम पहुंच गए. तब उन्होंने अधिकारियों को इस फिल्म के निर्माण में योगदान करने का निर्देश दिया था.

उनका कहना है कि इस फिल्म ने हॉकी को सुर्खियों में ला दिया है. फिल्म के कलाकारों ने इसमें अच्छा काम किया है. इसमें शाहरुख का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा है. मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री भी यह फिल्म देखें. प्रधानमंत्री मनमोहन भले ही फिल्मों के अधिक शौकीन नहीं रहे हैं लेकिन उन्होंने पीमओ में अभिनेता संजय दत्त की भूमिका वाली फिल्म लगे रहो मुन्नाभाई देखी थी. प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी पर बनी फिल्म भी देखी थी.

जाहिर खेल विषयों पर बनी ऐसी फिल्मों से खेल प्रेमियों एवं खिलाडियों का उत्साह बढेगा. मैं एक बार फिर 'चक दे इंडिया' की टीम को बधाई देता हूं.

Thursday, August 30, 2007

क्या आप १५ हजार रुपये में लैपटॉप खरीदने का सपना देखते रहे हैं?


क्या आप १५ हजार रुपये में लैपटॉप खरीदने का सपना देखते रहे हैं? यहां का एक उद्यमी आम लोगों को १५ हजार रुपये में लैपटॉप उपलब्ध कराने के मिशन पर लगा हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही बाजार में वे इतना कम कीमती लैपटॉप उपलब्ध कराने में सफल रहेंगे।

मुंबई स्थित एलाइड कम्प्यूटर्स इंटरनेशनल (एशिया) लिमिटेड (एसीआई) के प्रबंध निदेशक हिरजी पटेल ने कहा कि मैं आम व्यक्ति तक इतना सस्ता लैपटॉप पहुंचाना चाहता हूं। इस नए लैपटॉप की कीमत १५ हजार रुपये होगी और इसका वजन एक किलोग्राम से भी कम होगा। यह भारत में उपलब्ध मौजूदा लैपटॉप से काफी छोटा व हलका होगा। पटेल सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के विशेषज्ञ हैं। उनकी इच्छा है कि लैपटॉप औरनोटबुक जैसे उत्पाद आम लोगों की पहुंच के दायरे में होने चाहिए। पटेल वैमानिकी के भी विशेषज्ञ हैं और अतीत में वे जीईसी एवियोनिक्स के गाइडेंस विपन डिवीजन एवं ब्रिटिश एसरोस्पेस पीएलसी के शोध एवं विकास विभाग में मिसाइल वैज्ञानिक की हैसियत से काम कर चुके १५ हजार रुपये में लैपटॉप उपलब्ध कराना अविश्वसनीय समझा जा सकता है, लेकिन पटेल के दावे को नकारा नहीं जा सकता।

पटेल ने २००२ में एशियाई कंपनी की स्थापना की थी और २००४ में उन्होंने भारतीय बाजार में ३० हजार रुपये में और २००५ में २० हजार रुपये में लैपटॉप उपलब्ध कराया। उन्होंने कहा कि इस साल हम अपनी उत्पादन क्षमता १० हजार यूनिट से बढा कर एक लाख यूनिट प्रति साल करना चाहते हैं। हम महाराष्ट्र के बसई और गुजरात के गांधीनगर स्थित अपने निर्माण संयंत्रों का विस्तार करना चाहते हैं। हम अपने असेंबलिंग कारोबार का और विस्तार करना चाहेंगे। उन्होंने बताया कि बसई में एक विपणन एवं सर्विस सेंटर भी स्थापित किया जाएगा।

Tuesday, August 28, 2007

मेरी लापता पत्नी को लाओ और एक लाख रुपये ले जाओ

'मेरी लापता पत्नी को लाओ और एक लाख रुपये ले जाओ' यह कहना है रेलवे इंजीनियर राजीव कुमार का. १५ दिन पहले यानी १५ अगस्त को जहां एक ओर भारत की स्वतंत्रता की ६० वी वर्षगांठ मनायी जा रही थी, वहीं दूसरी ओर इंजीनियर साहब ट्रेन में लापता हुई अपनी नयी नवेली पत्नी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे.

घटना उस वक्त घटी जब राजीव और उनकी ३० वर्षीया पत्नी रानी सिंह पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुडी से पटना आ रही राजधानी एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे.रानी बांका के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुभाष चंद्र की पुत्री हैं. राजीव एवं रानी ने १४ अगस्त की रात कटिहार रेलवे स्टेशन पर खाना खाया था. इसके बाद वे दोनों ट्रेन में अलग अलग बर्थ पर सो गये. लेकिन जैसे ही सुबह ५ बजे राजीव की आंख खुली तो रानी को सीट पर नहीं पाया. राजीव ने मोकामा स्टेशन पर रेलवे पुलिस में इस बारे में एक कम्पलेंट दर्ज करायी. लेकिन पुलिस रानी को ढूंढ पाने में असफल रही. पत्नी के वियोग में टूट चुके राजीव ने पुलिस की असफलता के बाद विभिन्न स्टेशनों एवं महत्वपूर्ण स्थानों पर पोस्टर एवं बैनर चिपकाने शुरू कर दिये.

पुलिस के अलावा रानी की तलाश में रानी के भाई एवं अन्य संबंधी लगे हुए हैं. राजीव ने यह घोषणा की है कि जो व्यक्ति रानी के बारे में सूचना देगा, वे उसे १००,००० रुपये का इनाम देंगे.यह दंपती १० अगस्त को हनीमून मनाने के लिये दार्जीलिन्ग रवाना हुआ था. राजीव एवं रानी इसी वर्ष अप्रैल में परिणय सूत्र में बंधे थे, लेकिन कुछ ही महीने बाद राजीव को पत्नी विरह का सामना करना पड रहा है.

Monday, August 27, 2007

श्रद्घांजलि

शनिवार का दिन था। शाम के ७.४५ बज रहे थे। लोग शहर के मशहूर गोकुल चाट भंडार में स्वादिष्ट चाट भंडार का लुत्फ उठा रहे थे। लोगों को यह जरा भी आभास नहीं था कि वे दोबारा चाट का स्वाद चखने के लिए जिंदा रह पाएंगे। कुछ ही क्षण बाद यह खुशी मातम में तब्दील हो गयी और कइयों के सपने अधूरे रह गए।

गौरतलब है कि २५ अगस्त की शाम को राजधानी हैदराबाद के प्रसिद्घ गोकुल चाट भंडार एवं मौज-मस्ती के लिए प्रसिद्घ लुंबिनी पार्क में बम धमाके हुए जिनमें लगभग ४२ लोगों की मौत हो गयी एवं ५० से अधिक इसमें घायल हो गए। लुंबिनी पार्क में स्थानीय पर्यटकों के अलावा अन्य राज्यों से भी बडी संख्या में पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। शनिवार को भी मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र से आए कुछ पर्यटकों के अलावा स्थानीय पर्यटक यहां मौजूद थे। शहर के दिल कहे जाने वाले हुसैनसागर झील के किनारे स्थित इस पार्क में हुए विस्फोट में १० लोगों की मौत हो गयी है एवं कई अन्य घायल हुए हैं। इसी तरह गोकुल चाट भंडार में चाट का मजा ले रहे लोगों की खुशियां क्षण भर में मातम में बदल गयीं। यहां हुए विस्फोट में करीब ३२ लोग मारे गए एवं दर्जनों घायल हो गए। इनमें कई प्रेमी युगल भी शामिल थे।

दहशतगर्द चाहे जिस धर्म या कौम के हों, लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि कोई भी धर्म इस कदर विवेकहीन व पागलपनपूर्ण रक्तपात की इजाजत नहीं देता। जाहिर है ऐसे में इंसान का खून बहा कर वे सबसे बडा अपराध ईश्वर के प्रति कर रहे हैं। इस बम हादसे के शिकार बने लोगों की आत्मा को शांति तो मिल जाएगी, लेकिन आतंकवादियों को शांति इसलिए नसीब नहीं होगी क्योंकि वे आत्मा खो चुके हैं। जाहिर है ऐसी आतंकवादी करतूतों की कडी निंदा की जानी चाहिए। विस्फोटों में मारे गए लोगों के परिजनों को इस दुखद वक्त में www.aawaj.blogspot.com की ओर से सांत्वना . . . .

Thursday, August 23, 2007

विदेशों में परचम लहराती भारतीय महिलाएं

विदेशों में अपने योगदान के लिए सराहे जाने वाले भारतीयों की कमी नहीं है. इन भारतीयों में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी हैं। इनमें से कुछ भारतीय महिलाओं से आपको परिचित करा रहे हैं -

श्रिति वडेरा:

भारतीय मूल की अर्थशास्त्री श्रिति वडेरा को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने कनिष्ठ अंतर्राष्ट्रीय विकास मंत्री नियुक्त किया है। इस जिम्मेदारी के तहत उन्हें भारत संबंधी मसलों से भी निपटना होगा। अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग में संसदीय अवर विदेश मंत्री के रूप में वडेरा की नियुक्ति को खास माना जा रहा है। उनकी नियुक्ति इसलिए पक्की मानी जा रही थी क्योंकि वे ब्राउन की करीबी रही हैं। अब वे अफ्रीका समेत कई अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर ब्राउन को सलाह देती रहेंगी।

युगांडा में जन्मी वडेरा का परिवार १९७० के दशक में भारत चला गया था और उसके बाद यह परिवार इंग्लैंड चला आया जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड के समरविले कॉलेज में राजनीति, दर्शन शास्त्र और अर्थशास्त्र की पढाई की। वे लंदन के वित्तीय जिले में कई आर्थिक और वित्तीय पदों पर रह चुकी हैं।
वे यूबीएस वारबर्ग नामक निवेश बैंक में १४ साल बिता चुकी हैं, जहां उनकी ड्यूटी के दायरे में ऋण पुनर्संरचना जैसे मुद्दों पर विकासशील देशों की सरकारों को सलाह देने जैसी जिम्मेवारी शामिल थी।

वडेरा कई वर्षों तक ऑक्सफैम की ट्रस्टी भी रह चुकी हैं। पिछले आठ वर्षों से वे गॉर्डन ब्राउन की सलाहकार के पद को सुशोभित करती रही हैं। साथ ही वे ब्राउन की आर्थिक सलाहकार परिषद की भी सदस्य रह चुकी हैं। इंटरनेशनल फाइनेंस फैसिलिटी फॉर इम्यूनाइजेशन नामक परियोजना के अस्तित्व के पीछे भी उनकी खास भूमिका थी जिसके अंतर्गत गेट्स फाउंडेशन की मदद से बॉन्ड की बिक्री से चार अरब डॉलर जुटाए जाने का लक्ष्य रखा गया। इसका इस्तेमाल ५० करोड बच्चों को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए किया जाना था।

वडेरा ब्राउन की विश्वस्त सलाहकार रही हैं। वे वित्त मंत्रालय और लंदन के वित्तीय जिले सीटी के बीच संपर्क सूत्र की भूमिका निभाती रही हैं। पिछले एक दशक में ब्राउन ने जो कुछ भी योगदान दिया है, उसके पीछे वडेरा की खास भूमिका रही है।

सिंथिया मलारवडी:
भारतीय मूल की सिंथिया मलारवडी की उम्र अभी महज २० साल है, लेकिन यह भारत के केरली मूल की यह महत्वाकांक्षी महिला स्विस संसद में अपनी जगह बनाना चाहती हैं और अक्टूबर में होने वाले चुनाव में किस्मत आजमाएंगी। स्विटजरलैंड की ग्रीन पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है। अगर मलारवडी चुनाव जीतती तो वे २०० सदस्यीय नेशनल एसेंबली की सदस्य बन जाएंगी। यह स्विस संसद का मुख्य चैम्बर है जिसे भारत की लोकसभा की तरह माना जा सकता है।

पेशे से बैंककर्मी मलारवडी पिछले दो वर्षों से सोलोथॉर्न नगरपालिका की निर्वाचित सदस्य रही हैं। पर्यावरण मुद्दों में गहरी दिलचस्पी और स्विटजरलैंड में विदेशी मूल के लोगों की समस्याओं ने उन्हें राजनीति की ओर आकर्षित किया। मलारवडी कार्बनिक खेती की जबर्दस्त पैरोकार हैं। वे चाहती हैं कि पौधों और वनस्पतियों की रक्षा इंसान की तरह ही की जानी चाहिए। मलारवडी अपने राजनीतिक करियर की प्राथमिकताओं को लेकर बिल्कुल स्पष्टवादी हैं।

केरल के अलपुझा जिले के पी. टी. राजन और अनम्मा दंपती की पुत्री मलारवडी का भारत से संबंध केरल तक ही सीमित है। वे दो-तीन वर्षों में एक बार अपने पुश्तैनी इलाके का दौरा अवश्य करती हैं। वे यह स्वीकार करती हैं कि उन्हें भारतीय खाना और खासकर मां के हाथ का बना खाना पसंद है। उन्ह भारतीय फिल्में देखना, भारतीय पोशाक व जेवरात पहनना पसंद है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश मैं भारत के बारे में जो कुछ भी जानती हैं, वह केरल तक ही सीमित है।

आशा श्रीनिवासन :

एक भारतीय अमेरिकी संगीत निर्देशक अमेरिका की नयी पीढी के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं। उन्हें अमेरिका की शीर्ष १५ महिला संगीतकारों की सूची में शामिल किया गया है। २६ वर्षीया आशा श्रीनिवासन ने मैरीलैंड विश्वविद्यालय से डॉक्टर की डिग्री ली है। उन्होंने न्यूयार्क में ऑर्केस्ट्रा ऑफ सट ल्यूक्स, जो अमेरिका का अग्रणी चैम्बर ऑर्केस्ट्रा है, द्वारा आयोजित नोटेबल वूमेन फेस्टिवल के सेलेब्रेशन ऑफ वूमेन कम्पोजर्स में कार्यक्रम पेश किया और इस आधार पर उन्हें शीर्ष संगीत निर्देशकों की सूची में शामिल किया गया। उन्होंने इस कार्यक्रम में अपनी मेधा का परिचय दिया। इस ऑर्केस्ट्रा को संगीत की दुनिया में खास प्रतिष्ठा हासिल है। श्रीनिवासन की रचना ‘दि रिवर नियर सवाथी’ को इसके लिए चुना गया। उन्होंने २० से ३० वर्ष की ६६ अन्य अमेरिकी संगीतकारों को पछाड कर इस सूची में अपनी जगह बनाई। यह प्रतियोगिता दिसंबर, २००६ में हुई।

उताह में जन्मी आशा की परवरिश अमेरिका और भारत में हुई है। उनकी संगीत रचनाएं दक्षिण भारतीय कर्नाटक संगीत से बेहद प्रभावित हैं। वैसे वे इसे अच्छी तरह नहीं जानतीं। लेकिन इस संगीत ने निश्चित रूप से उन्हें प्रभावित किया है। आशा मैरीलैंड विश्वविद्यालय में संगीत निर्देशन के क्षेत्र में पढाई कर रही हैं। वहां वे इलेक्ट्रानिक म्यूजिक का अध्यापन भी करती हैं। वर्ष २००६ में आशा को वालसोम प्रतियोगिता में एक चतुर्वाद्य कल्पिथा के लिए एक पुरस्कार मिला। साथ ही उन्हें प्रिक्सडी इटे कम्प्टीशन में बांसुरीवादन के लिए दूसरा पुरस्कार मिला। साथ ही उन्हें अपनी कम्प्यूटर संगीत रचना एलोन, डांसिंग के लिए भी पुरस्कार मिला। इसे २००५ में सीमस (सोसायटी फॉर इलेक्ट्राॅ-इकॉस्टिक म्यूजिक इन यूएस) में पेश किया गया था।


सीमा सिंह:
सीमा सिंह न्यूजर्सी प्रांत की राजनीति में अपना करतब दिखा रही हैं। सीमा सिंह न्यूजर्सी प्रांत के फेयर एंड क्लीन इलेक्शंस पायलट प्रोग्राम के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय अमेरिकी महिला उम्मीदवार बन गयी हैं। यह प्रोग्राम एक ऐसी सरकारी प्रणाली है जिसके तहत उम्मीदवारों को राजनीतिक चुनाव अभियान के लिए सरकार से वित्तीय सहायता मिलती है।

डिस्ट्रिक्ट कंस्टीचुएंसी से डेमोक्रेट पार्टी की उम्मीदवार सीमा सिंह ने जून में इसकी पुष्टि की कि उन्होंने इस पायलट प्रोग्राम के लिए क्वालीफाई करने के उद्देश्य से दस्तावेज सौंप दिया है। क्लीन इलेक्शंस प्रोग्राम के तहत सरकारी वित्तीय सहायता हासिल करने के इच्छुक उम्मीदवार को खास संख्या में पंजीकृत मतदाताओं से वित्तीय योगदान (अक्सर पांच डॉलर तक) हासिल करना पडता है। बदले में उम्मीदवार को सरकार से उसके चुनाव अभियान के लिए रकम दी जाती है और उम्मीदवार यह वादा करता है कि वह चुनाव अभियान के लिए निजी स्रोत से रकम नहीं जुटाएगा। एक बार जब न्यूजर्सी चुनाव कानून प्रवर्तन आयोग ने इन सभी ४०० वित्तीय योगदानों को प्रमाणित कर दिया तो सीमा सिंह को राज्य सरकार से चुनावी अभियान के लिए ४६ हजार डॉलर का अनुदान मिलेगा। यह चुनाव नवंबर में होने वाला है। ४५ वर्षीया सीमा सिंह १९८४ में न्यूजर्सी आई थीं और उन्होंने रटगर्स यूनिवर्सिटी और सेटन हॉल लॉ स्कूल से पढाई की। वे अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मामले की वकील रही हैं और उनका कार्य भारतीय और एशियाई समुदायों पर केन्द्रित रहा है।
२००२ में उन्हें तब बडी कामयाबी मिली जब वे न्यूजर्सी मंत्रिमंडल में जगह बनाने वाली पहली भारतीय बन गयीं।

Saturday, August 18, 2007

महिलाओं की आवाज

मीरा, शांति, कविता, मिथलेश . .। ये नाम हैं एक ऐसे अखबार की महिला पत्रकारों के, जो महिलाओं के हितों के लिए आवाज उठा रही हैं। देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं द्वारा खबर लहरिया नामक एक पाक्षिक अखबार निकाला जा रहा है जिसमें ये ग्रामीण महिलाएं बढ-चढकर भूमिका निभा रही हैं। अखबार के लिये सुर्खियां तैयार करने से लेकर प्रकाशन तक सभी काम ये महिलाएं खुद ही करती हैं। यह अखबार करीब २०० से अधिक गांवों में इन महिलाओं की आवाज बना हुआ है।

बुंदेली भाषा के इस अखबार ने कई सनसनीखेज खबरों का खुलासा किया है और विभिन्न मुद्दों पर प्रशासन को कटघरे में खडा किया है। साथ ही यह अखबार स्वास्थ्य व लैंगिक मुद्दों पर समाज का आईना बन चुका है। ये ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अपने घरों से निकल कर सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्घता की बदौलत अपनी आजीविका तलाशने की कोशिश की है। वे न सिर्फ अपनी जिंदगी संवार रही हैं बल्कि आसपास के लोगों की जिंदगी को भी नयी दिशा दे रही हैं।

दलित महिलाओं के एक समूह द्वारा निकाले जाने वाले आठ पृष्ठों के इस अखबार की दिलचस्प सुर्खियों वाली खबरों और इन महिला पत्रकारों के पर्दे के पीछे की दुनिया को दिल्ली स्थित एक फिल्मकार विशाखा दत्ता ने अपनी लघु फिल्म ताजा खबरः हॉट ऑफ द प्रेस में जगह दी है। ३० मिनट की यह फिल्म हाल ही में नयी दिल्ली में दिखायी गयी। यह फिल्म जितना इस अखबार पर फोकस करती है, उतना ही इन महिला पत्रकारों की टीम पर भी फोकस करती है। पिछले पांच वर्षों में इस अखबार की प्रसार संख्या ढाई हजार से अधिक हो गयी है और यह २ रुपये प्रति कॉपी बिकता है।

ये महिलाएं खबरें इकट्ठा करने के लिए विभिन्न गांवों का चक्कर लगाती हैं और अधिकांश समय उन्हें पैदल ही इन इलाकों का चक्कर लगाते देखा जाता है। वे पंचायतों, नौकरशाही, स्कूलों, अस्पतालों के बारे में खबरें जुटाती हैं। अधिकांश पत्रकारों के लिए, चाहे वे मुख्यधारा के ही क्यों न हों, खबरें जुटाना आसान नहीं होता। ऐसे में इन ग्रामीण महिला पत्रकारों को भी मुश्किलों का सामना करना पडता है। खबर लहरिया की संपादक मीरा का कहना हैं, ‘‘हमें समस्याओं का सामना करना पडता है। कई बार हमें सच का खुलासा करने के लिए धमकी भी दी जाती है।’’

मीरा आगे कहती हैं कि जब हमने टीबी की बीमारी के प्रकोप से जूझ रहे एक सुदूर गांव में लोगों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया नहीं कराए जाने की प्रशासन की लापरवाही का पर्दाफाश एक बैठक में किया तो अधिकारी हमारे खिलाफ हो गए। हमने वहां बैठे अधिकारियों की सच्चाई का पर्दाफाश कर दिया।
एक दूसरी महिला पत्रकार शांति का कहना है कि खबर लहरिया ने उनके जीवन को बदल दिया है। दूसरी दलित महिलाओं की तरह मुझे भी हर तरह की कठिनाई का सामना करना पड रहा था। आर्थिक दुश्वारी से लेकर पति द्वारा शारीरिक उत्पीडन जैसी समस्याओं से मैं जूझती रही। मैं नौकरानी की हैसियत से काम कर रही थी और पढ-लिख नहीं सकती थी, लेकिन जब से मैंने यहां काम करना शुरू किया है, मुझमें नया आत्मविश्वास जगा है। मैंने पढना और लिखना सीख लिया है और अब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गयी हूं। शांति ने इस अखबार से जुडने के बाद अपने पति को छोड दिया है और अब अपने ५ बच्चों के साथ अलग रहती है।

शांति की तरह दूसरी महिला पत्रकारों की कहानी भी साहस भरी है। एक और पत्रकार कविता, जो अखबार के बांदा संस्करण की संपादक है, की भी यही कहानी है। उसने भी इस मिशन में शामिल होने के बाद अपने पति को छोड दिया है, क्योंकि उसका पति उसका खयाल नहीं रखता था। अब वह स्वतंत्र जीवन जी रही है।

दूसरे पत्रकारों की तरह इन महिलाओं ने भी पत्रकारिता का गहन प्रशिक्षण लिया है। राजनीतिक विज्ञान में डिग्री की पढाई कर रही मीरा कहती हैं, ‘‘ऐसी नौकरी पर रखे जाने से पहले हमें प्रशिक्षित किया गया। कम्प्यूटर पर और पेजमेकर पर काम करने में भले ही हम सक्षम नहीं हैं, लेकिन बाकी सभी काम हम निपटा लेते हैं। हम यह काम भी सीखना चाहते हैं, लेकिन ऐसा कोई संस्थान नहीं है जो हमें पेजमेकर की जानकारी दे सके।’’

पिछले पांच वर्षों में इस अखबार ने खास पहचान बना ली है और लोग अब अपनी मर्जी से इन महिलाओं के पास सूचना लेकर आते हैं। यहां तक कि अखबार को विज्ञापन भी मिलता है। मार्च, २००४ में खबर लहरिया से जुडी महिलाओं को उत्कृष्ट मीडियाकर्मी के तौर पर मीडिया फाउंडेशन की ओर से प्रतिष्ठित चमेली देवी जैन पुरस्कार दिया गया।

शांति ने कहा, ‘‘जब हमने पुरस्कार पाया तो हमारे परिवार वालों का रुख हमारे प्रति अधिक सहयोगात्मक हो गया। हम ब्रेकिंग न्यूज देते हैं। हमने विधवाओं के लिए पेंशन वितरण में धोखाधडी करने वाले एक मैनेजर के बारे में खबर छाप दी तो इस मैनेजर को बर्खास्त कर दिया गया।’’
यूं तो ये महिला पत्रकार खुद भी इस अखबार की मार्केटिंग करती हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए कुछ एजेंट भी बहाल कर रखे हैं। अब इस अखबार की प्रतियां प्रखंड मुख्यालयों की छोटी दुकानों और चाय दुकानों और यहां तक कि सुदूर गांवों में भी उपलब्ध रहती हैं।

इस अखबार के लिए कोष की व्यवस्था दिल्ली स्थित निरंतर नामद एक संगठन करता है। यह संगठन इन पत्रकारों को नियमित रूप से संपादकीय और प्रोडक्शन सहायता देता है। इसके अलावा संवाददाताओं को प्रशिक्षण भी देता है और वित्तीय सहायता भी दी जाती है। जाहिर है ऐसे प्रयासों से साहसिक पत्रकारिता के इतिहास में एक और प्रेरक अध्याय जुडेगा।

Friday, August 17, 2007

दुनिया जिसे कहती मिट्टी का खिलौना................

दुनिया की गजब कहानी देखी

हर चीज यहां पर आती-जाती देखी


जो आ के ना जाए वो बुढ़ापा देखा

जा के फिर ना आए वो जवानी देखी

Sunday, August 12, 2007

खोज: कब शुरू कारनामों का लेखा-जोखा ?

यह दुनिया तरह-तरह के अजूबों एवं कारनामों से भरी पडी है। ऐसे लोगों की तादाद काफी अधिक है जो अपनी प्रतिभा एवं बहादुरी के करतब दिखाकर इतिहास रचने में सफल हुए हैं। राजनीति, खेल, संगीत या किसी भी क्षेत्र में नाम कमाने वाले लोगों को ‘दि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ एवं ‘लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में शामिल किया जाता रहा है। हर वर्ष दुनिया भर के हजारों लोग इस उम्मीद में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स लिमिटेड से संफ करते हैं कि उनका नाम इसमें शामिल हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रिकॉर्ड बनाने का यह सिलसिला कब शुरू हुआ था?

आर्थर गिनीज ने आयरलैंड के डबलिन शहर में सेंट जेम्स गेट में १७५९ में ‘गिनीज ब्रेवरी’ की स्थापना की। १९३० के दशक तक गिनीज ब्रेवरी की भारी-भरकम प्रतियां ब्रिटेन के सभी सरकारी कार्यालयों में उपल?ध थीं। ब्रेवरी हमेशा अच्छे विचारों को बढावा देने की तलाश में रहता था और किसी क्षेत्र में नाम कमाने वाले व्यक्ति को लोगों की नजर में लाता था। ब्रेवरी के प्रबंध निदेशक सर ह्यूज बीवर १९५१ में एक पार्टी में गए। पार्टी में मौजूद लोगों के साथ उनकी इस बात पर बहस छिड गई कि यूरोप में सबसे तेज रफ्तार से उडने वाला पक्षी कौन है। पार्टी में उन्हें एहसास हुआ कि गिनीज ब्रेवरी में इस तरह के प्रश्नों का जवाब उपल?ध है और इस पुस्तक को लोगों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाया जा सकता है। उनका यह सोचना सही साबित हुआ।

सर ह्यूज का यह सपना उस समय वास्तविकता में त?दील हुआ जब लंदन में तथ्य अन्वेषण एजेंसी चलाने वाले जुडवां भाइयों - नॉरिस ऑर रॉस - को दुनिया भर के रिकॉर्डों को संकलित करने का ठेका दिया गया। इस तरह ‘दि गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ का जन्म हुआ। गिनीज बुक का पहला संस्करण १९५५ में प्रकाशित हुआ और गिनीज बुक ब्रिटेन में सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक बनी।

इसके बाद से गिनीज बुक एक जाना-पहचाना नाम हो गई। अभी तक दुनिया के ७७ देशों और ३८ भाषाओं में गिनीज बुक की ८ करोड से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। सफलता की यह कहानी अभी भी जारी है। गिनीज बुक का मुख्यालय लंदन में स्थित है। अभी भी हर वर्ष दुनिया भर के हजारों लोग इस उम्मीद में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स लिमिटेड से संफ करते हैं कि उनका नाम इसमें शामिल हो जाएगा।

‘लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ को भी इस होड में पीछे नहीं माना जा सकता। आज लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स सफलता की सीढियां चढते हुए काफी ख्याति अर्जित कर चुकी है। गिनीज बुक की तरह लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स भी रिकॉर्डों की दुनिया में महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंच गई है।

चीन के ली जियां हुआ ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें १७ दिसंबर, १९९८ को अपने कानों के सहारे ५० किलो वजन उठाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया।

क्या आप ‘किलर टमेटो अटैक’ के बारे में जानते है? स्पेन के बूनेल शहर में हर वर्ष अगस्त में यह समारोह आयोजित किया जाता है। इसमें शामिल लोग एक-दूसरे पर टमाटरों से प्रहार करते हैं। वर्ष १९९९ में हुए इस समारोह में १२० टन टमाटर का प्रयोग किया गया था। इस समारोह में २५ हजार से भी अधिक लोग शामिल हुए थे। कहा जाता है कि यह परंपरा शहर के एक फार्मासिस्ट द्वारा शुरू की गई थी।

जर्मनी के म्यूनिख में अक्टूबर, १९९९ में आयोजित पारंपरिक ‘बीयर फेस्टिवल’ में ७० लाख लोग शामिल हुए थे। इस समारोह में लगभग ६० लाख लीटर बीयर का इस्तेमाल किया गया था।

लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाले लुधियाना के लाल सिंह गर्छा एवं उनकी पत्नी सुरजी कौर भारत में एकमात्र ऐसे पति-पत्नी हैं जिनकी लंबाई सबसे कम है। गर्छा की लंबाई ३ फुट ७ इंच एवं सुरर्जी कौर की लंबाई सिर्फ ३ फुट ५ इंच है।

राजनीतिक क्षेत्र में भी कई ऐसे रिकॉर्ड बनते रहे हैं जिन्हें गिनीज बुक या लिमका बुक में जगह दी जाती रही है। १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति के रथ पर सवार कांग्रेस ने रिकॉर्ड ११,५२,२१,०७८ वोट प्राप्त किए और ५१३ संसदीय सीटों में से ४१२ सीटें जीत कर लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह बनाई।

इसी तरह विश्वनाथ प्रताप सिंह ने २० जुलाई, १९९० को अपनी पार्टी में संकट पैदा होने के फलस्वरूप दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में ढाई घंटे लंबे संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर एक रिकॉर्ड बनाया। इस संवाददाता सम्मेलन में ८०० से भी अधिक पत्रकार शामिल हुए थे।

बात कानों द्वारा अधिक वजन उठाने की हो, दांतों द्वारा ट्रेक्टर या रेल के इंजन को खींचने की या फिर मोटर साईकिल द्वारा जम्प लगाने की, इन कारनामों में कभी-कभी जोखिम भी उठाने पडते हैं। हाल ही में उ?ार प्रदेश में कलाबाजी के ऐसे ही कार्यकम में बाबूराम एवं उसकी पत्नी दोनों ही लोहे के एक गोल छल्ले में निकलने का करतब दिखा रहे थे कि अचानक गर्दन दबने से उसकी पत्नी की मौत हो गई थी। बाबूराम भी बहादुरी का यह कारनामा दिखाकर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराने का सपना पाले हुआ था।

Saturday, August 11, 2007

लॉस एंजिल्स में इंडिया स्पलेंडर महोत्सव शुरू

भारत की स्वतंत्रता की ६०वीं वर्षगांठ पर होने वाले समारोह का शुभारंभ आज ६ दिवसीय इंडिया स्पलेंडर महोत्सव से हो गया है। लॉस एंजिल्स में आयोजित इस समारोह का शुभारंभ शाहरुख खान की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ के प्रदर्शन से हुआ है।

६ दिवसीय इस समारोह के दौरान भारतीय सिनेमा, कला, फैशन, नृत्य, संगीत, अध्यात्म पर आधारित कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। १५ अगस्त को एक भव्य कार्यक्रम के साथ इस समारोह का समापन हो जाएगा। इस दौरान कई सर्वश्रेष्ठ समकालीन भारतीय फिल्में दिखाई जाएंगी। भारतीय समूह एमकॉर्प ग्लोबल के प्रमुख भूपेन्द्र कुमार मोदी ने कहा कि हमारा उद्देश्य भारतीय संस्कृति के सभी आयामों से दुनिया को अवगत कराना है। तेजी से फल-फूल रहा हमारा भारतीय फिल्मोद्योग हमारी संस्कृति की पहचान बन गया है। हम अपने इतिहास के इस सुखद अध्याय की याद में बहुआयामी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा एक प्रभावशाली मनोरंजन उद्योग बन गया है और हमें खुशी है कि मुंबई एवं लॉस एंजिल्स के फिल्म निर्माताओं के बीच वैचारिक आदान-प्रदान हो रहा है। इस कार्यक्रम की सह-आयोजक कंपनी इंटरनेशनल क्रिएटिव मैनेजमेंट के चेयरमैन एवं सीईओ जेफरी बर्ग ने कहा कि भारतीय सिनेमा की महत्ता को हम समझते हैं। हमें खुशी है कि इसी बहाने हम वैचारिक आदान-प्रदान कर रहे हैं और कला क्षेत्र में सहयोग बढा रहे हैं। भारतीय टेनिस स्टार और जाने-माने हॉलीवुड फिल्म प्रोड्यूसर अशोक अमृतराज यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया स्कूल ऑफ थिएटर, फिल्म एंड टेलीविजन एवं आर्टवाला के सहयोग से आयोजित इंडिया स्पलेंडर समारोह के सांस्कृतिक राजदूत हैं। एमग्लोबल ट्रस्ट के चेयरमैन डॉ. एम ने कहा कि इंडिया स्पलेंडर समारोह में भारत की जीवंतता से अवगत कराएगा। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच कला क्षेत्र में सहयोग बढाने की दिशा में यह बेहद अहम कदम है। इस महोत्सव में कई भारतीय फिल्मकारों की हालिया फिल्में दिखाई जाएंगी। इसमें प्रख्यात अभिनेता और फिल्म निर्माता स्वर्गीय राज कपूर को विशेष श्रद्घांजलि दी जाएगी। आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर का व्याख्यान इसका एक खास आकर्षण होगा। वहीं भारतीय डिजाइन सुनीत वर्मा अपने परिधानों को पेश करेंगे।

Sunday, August 5, 2007

उडीसा में आज भी डाइन

एक ओर जहां भारत में आधुनिकतावादी एवं पश्चिमी संस्कृति हावी होती जा रही है, वहीं आज के कम्प्यूटराइज्ड युग में भी ग्रामीण समाज अंधविश्वास एवं दकियानूसी के जाल से मुक्त नहीं हो पाया है। देश के कई हिस्सों में जादू-टोना, काला जादू, डाइन जैसे शब्दों का महत्व अभी भी बना हुआ है। उडीसा भी इस अंधविश्वास से अछूता नहीं है।

‘जादुई राज्य’ के नाम से विख्यात उडीसा में अंधविश्वास का इतिहास काफी पुराना रहा है। आज के आधुनिक माहौल में भी उडीसा में डाइन को पीट-पीट कर मार डालने जैसी सनसनीखेज घटनाएं जारी हैं। उडीसा में हर वर्ष दर्जनों महिलाओं को डाइन करार देकर उनकी हत्या कर दी जाती है। इन महिलाओं में अधिकांश विधवा या अकेली रहने वाली महिलाएं शामिल होती हैं। हालांकि इन महिलाओं का लक्ष्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं होता है, लेकिन ओझा (जादू-टोना करने वाले व्यक्ति) द्वारा किसी महिला को डाइन करार देने के बाद ग्रामीण समुदाय इनका बहिष्कार करने एवं इनकी हत्या करने को आमादा हो जाता है।

एक गैर-सरकारी संगठन के अनुसार भारत में हर वर्ष लगभग २०० महिलाओं को डाइन होने के संदेह में मौत के घाट उतार दिया जाता है। असम पुलिस के आंकडों के अनुसार पिछले ५ वर्षों में पूर्वोत्तर भारत में डाइन होने के संदेह में कम से कम २०० महिलाओं को मौत के घाट उतारा जा चुका है। असम में इसी महीने २४ अप्रैल को एक मां और उसकी बेटी को डाइन होने के शक में मौत के घाट उतार दिया गया। इन दोनों के सिर काट कर नदी में फेंक दिए गए। उडीसा ही नहीं, देश के अन्य राज्यों में भी डाइन होने के संदेह में महिलाओं की हत्याएं की जाती रही हैं। इन राज्यों में बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। एक आंकडे के अनुसार झारखंड के आदिवासी जिलों में १९९०-१९९६ की अवधि में डाइन होने के संदेह में लगभग ४०० महिलाओं की हत्या की गयी थी। विश्लेषकों का मानना है कि आदिवासी-बहुल राज्यों में साक्षरता दर का कम होना भी अंधविश्वास का एक प्रमुख कारण है। यहां महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

राज्य में ओझाओं द्वारा डाइन द्वारा करार दिए जाने के बाद महिला के शारीरिक शोषण का सिलसिला शुरू हो जाता है। ओझा इन महिलाओं को लोहे के गर्म सरिए से दागते हैं, उनकी पिटाई करते हैं, उन्हें गंजा करते हैं और फिर इन्हें नंगा कर गांव में घुमाया जाता है। यहां तक कि इस कथित डाइन महिला को मल खाने के लिए भी विवश किया जाता है। उदाहरण के लिए किसी विधवा द्वारा पडोसी या किसी संबंधी के घर में प्रवेश करने के बाद यदि उस घर का कोई सदस्य बीमार पड जाता है या उसकी मौत हो जाती है तो इस विधवा को डाइन समझ लिया जाता है और इसकी सूचना तुरंत स्थानीय ओझा को दे दी जाती है। बीमारी फैलने, मवेशियों के मरने और खेतों में खडी फसल को नुकसान होने जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए अक्सर इन अकेली रहने वाली महिलाओं एवं वृद्घ दंपतियों को दोषी माना जाता रहा है और उन्हें ग्रामीणों के हमले का शिकार होना पडता है।

दूसरी ओर राज्य की पुलिस का मानना है कि इस तरह की घटनाओं के पीछे अक्सर जमीन-जायदाद की मुख्य भूमिका होती है। पुलिस रिकॉर्डो के अनुसार ऐसी घटनाएं भी सामने आती रही हैं जिनमें किसी विधवा या अकेली रहने वाली महिला की जमीन-जायदाद हडपने के लिए उस महिला को डाइन करार दे दिया जाता है एवं उसकी हत्या कर दी जाती है और बाद में उसकी संप?ा पर क?जा कर लिया जाता है। ऐसी घटनाओं के पीछे इस महिला के संबंधी या पडोसियों की मुख्य भूमिका होती है। इस काम में भी ओझाओं की मदद ली जाती है। आदिवासी-बहुल उडीसा में अंधविश्वास की तेज बढो?ारी में इन ओझाओं की खास भूमिका रही है। इनका प्रथम लक्ष्य होता है पैसा ठगना। ये ओझा महिलाओं को भूत-प्रेत का शिकार बताकर अच्छी रकम ऐंठते हैं। ओझा पुरुष एवं औरत दोनों हो सकते हैं। आदिवासी जिलों, खासकर सुंदरगढ, कोरापुट, मयूरभंज, क्योंझर आदि में अंधविश्वास का अधिक बोलबाला है। ग्रामीण समुदाय के लोग किसी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर पर कम, इन ओझाओं पर अधिक विश्वास करते हैं। ये ओझा इन लोगों की बीमारी का जादू-टोने के माध्यम से इलाज का दावा करते हैं। इन्हें एक ताबीज पहनने को दिया जाता है। इसके साथ-साथ कुछ तंत्र-मंत्र करने को भी कहा जाता है।

कुछ समय पहले ही पुरी जिले के पार्सीपाडा गांव के एक युवक रमाकांत ने अंधविश्वास से प्रेरित होकर रोग से छुटकारा पाने के लिए अपनी जीभ काटकर भगवान शिव को चढा दी। उडीसा के एक आदिवासी गांव की आरती की कहानी तो और भी दर्दनाक है। पिछले वर्ष एक ओझा द्वारा आरती की हत्या का मामला सुर्खियों में आया था। जादू-टोने के सिलसिले में आरती का इस ओझा के यहां आना-जाना था। एक दिन ओझा ने जब आरती के साथ शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की तो आरती ने इसका विरोध किया। उसके इनकार के बाद इस ओझा ने आरती के साथ बलात्कार किया और बाद में उसकी हत्या कर दी थी। उडीसा के कई आदिवासी जिलों में नाबालिग बच्चों की बलि एवं पशु बलि की प्रवृ?ा भी यहां जारी है। सुबर्णपुर में बलि महोत्सव खास चर्चा का केंद्र रहा है। बलि महोत्सव १४ दिनों तक चलता है। इस महोत्सव में एक महिला बरूआ देवी की भूमिका निभाती है। इसमहिला का चयन महोत्सव के मुख्य पुजारी करते हैं। यह महिला बलि चढाए गए पशुओं का रक्त पीती है। यदि यह महिला ऐसा नहीं करती है या संकोच दिखाती है तो उसे पशुओं का रक्त पीने को बाध्य कर दिया जाता है। महोत्सव के आयोजकों एवं अन्य लोगों का मानना है कि ऐसा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

हालांकि जिला प्रशासन द्वारा इस तरह के महोत्सवों की अनुमति नहीं दी जाती है। राज्य में सक्रिय कुछ पशु अधिकारवादी संगठनों ने भी पशु बलि के खिलाफ आवाज उठाई है, लेकिन इसके बावजूद जिले के कई आदिवासी गांवों में इस तरह के आयोजनों की खबरें सुनने को मिलती रही हैं। ये लोग दशकों से जारी अपनी परंपराओं को समाप्त नहीं करना चाहते हैं।

Wednesday, August 1, 2007

मेरी बात

आवाज के सहारे ....शब्दों से मेरी बात